आध्यात्मिक कथा कहानी- नग्न कौन है ? adhyatmik kahani in hindi

आध्यात्मिक कथा कहानी- नग्न कौन है ? adhyatmik kahani in hindi

आध्यात्मिक कथा कहानी- नग्न कौन है ? adhyatmik kahani in hindi

नग्न कौन है?

नग्न कौन है तथा नग्न किसे कहते हैं और किस प्रकार के आचरण वाला पुरुष नग्न संज्ञा प्राप्त करता है?

ऋक साम और यजु यह वेदमई वर्णों का आवरण स्वरूप है जो मनुष्य मोह की वशीभूत होकर इसका त्याग कर देता है वह पापिष्ट नग्न कहलाता है। 

समस्त वर्णों के आवरण ( ढकने वाला वस्त्र ) वेदमयी ही है , इस हेतु उसका त्याग कर देने पर पुरुष नग्न हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं। 

ब्रह्मचारी गृहस्थ वानपृष्थ और संन्यासी ये चार ही आश्रम हैं। 

जो जन गृहस्थ आश्रम को छोड़ने के पश्चात वानप्रस्थ और सन्यासी नहीं होता वह पापी भी नग्न ही है। 

जो ब्राह्मण आदि वर्ण अपने धर्म को त्याग कर पर धर्म में परिवर्तित हो जाते हैं अथवा हीन वृत्ति का अवलंबन करते हैं वह नग्न कहलाते हैं ऐसा विद्वान वर्णन करते हैं। 

प्राचीन काल में सौ दिव्य वर्ष तक देवता और राक्षसों का परस्पर संग्राम हुआ उसमें हाद और प्रभृत्ति असुरों द्वारा सुरगण  पराजित हुए। 

अतः देवगण ने छीर सागर पर जाकर भगवान की आराधना की कि दया निधि रक्षा करो असुर हमको दुख देते हैं देवताओं ने भगवान की प्रेम पूर्वक महान विनती की। 

भगवान तो दया निधि ही हैं वहीं पर शंख चक्र और गदा पदम धारण करके प्रकट हुए और देवताओं से आराधना का कारण पूछा ? देवता बोले हे नाथ प्रसन्न होकर हम सब शरणागतों की रक्षा कीजिये! 

हे भगवन दैत्यों ने ब्रह्मा की आज्ञा उल्लंघन कर हमारे और त्रिलोकी के यज्ञ भागों का अपहरण कर लिया है हमारे द्रोही अपने वर्ण धर्म के पालक तथा वेदमार्ग वलंबी और तपस्वी हैं अस्तु हमसे वे नहीं मारे जाते आप ही कोई जतन बतलाइए।

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भगवान ने यह विनय सुनकर अपने शरीर से माया मोह को प्रकट किया और कहा कि यह उन सब दैत्यगणों को मोहित कर देगा। 

भगवान की ऐसी आज्ञा होने पर देवगण उन्हें प्रणाम कर जहां से आए थे वहां चले गए तथा माया मोह असुरों के पास गया माया मोह ने देखा कि दैत्यगण तपस्या में लगे हुए हैं। 

तब मयूर पिच्छधारी दिगंबर और मुंडित केश माया मोह ने असुरों से इस तरह कहा माया मोह बोला हे असुरों कहिये आप किस कामना से तपस्या कर रहे हैं किसी लौकिक फल की चेष्टा  है या पारलौकिक की।  

असुरगण बोले हे महामते हमने पारलौकिक फल की इच्छा से तपस्या आरंभ की है अब आपको क्या कहना है। 

माया मोह बोला यदि आपको मुक्ति की इच्छा है तो जैसा मैं कहता हूं वैसा करो आप लोग मुक्ति के खुले द्वार रूप इस धर्म का पालन कीजिए यह धर्म प्रमुख उपयोगी है इससे बढ़कर कोई और धर्म नहीं। 

इस प्रकार अनेक भांति की युक्तियों से अति रंजित वाक्यों द्वारा मायामोह ने असुरों को वैदिक धर्म से भ्रष्ट कर दिया। 

यह धर्म युक्त है, यह धर्म विरुद्ध है, यह सच है यह असत है, इससे मुक्ति होगी इससे नहीं , यह परमार्थ है यह अपरमार्थ है, यह कर्म है यह अकर्म है, यह दिगंबरो का धर्म है, यह साम्बरों का धर्म है। 

इस प्रकार के अनंत वादों को दिखलाकर माया मोह मे असुरों को स्वधर्म से च्युत कर दिया माया मोह ने दैत्यों को त्रयी धर्म रहित कर दिया और वे मोहग्रस्त हो गए पीछे अन्य दैत्य भी ऐसे ही कर दिए मतलब यह है की सारे असुरगण धर्म से विमुख कर दिए गए। 

माया मोह ने रक्त वस्त्र धारण कर असुरों के समीप जा मधुर वाक्य से कहा कि यदि तुमको मोछ की इच्छा है तो पशु हिंसा को त्याग कर बोध प्राप्त करो। 

यह संपूर्ण जगत विज्ञान मय है ऐसा जानो विद्वानों का ऐसा मत है कि यह संसार अनाधार है, रागादि दोषों से दूषित है। 

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इस संसार संकट में जीन अत्यंत भटकता फिरता है ऐसा जानो इस भांति माया मोह ने अल्पकाल ही में असुरों से वैदिक धर्म की बातचीत करना भी छुड़ा दिया। 

उनमें से कोई वेदों की, कोई देवताओं की और कोई ब्राह्मण की निंदा करने लगे वे कहने लगे हिंसा से भी धर्म होता है। 

अनेकों यज्ञो के द्वारा देवत्व लाभ करके यदि इंद्र को शमी आदि काष्ट का ही भोजन करना पड़ता है तो इससे तो पत्ते खाने वाले पशु ही अच्छा है। 

यदि यज्ञ मे बलि किए पशु को मोक्ष प्राप्त होती है तो यजमान अपने ही पिता को ही क्यों नहीं मार डालता यदि किसी और  पुरुष के भोजन करने से किसी पुरुष की तृप्ति हो सकती है तो देशाटन के समय खाद्य पदार्थ के ले जाने की क्या आवश्यकता है। 

पुत्रगण घर पर ही श्राद्ध कर दिया करें इसलिए श्राद्धादि  कर्मकांड लोगों की अन्ध श्रद्धा ही है इस प्रकार के अनेक वचन कह माया मोह ने असुरों को धर्म पथ से विचलित कर दिया।

अतः वे वेदत्रयी के त्याग से नग्न हो गए इतने ही काल में देवों ने तैयारी कर ली और युद्ध छिडा उसमें सन्मार्ग विरोधी असुरगण देवों द्वारा मारे गए। 

पहले उनके पास जो स्वधर्म रूप कवच था 

उसी से उनकी रक्षा हुई थी अब की बार उनके नष्ट हो जाने से वे नष्ट हो गए क्योंकि वेदमई रूप वस्त्र का त्याग करके नग्न हो गए थे। 

इससे यह शिक्षा मिलती है कि स्वधर्म को कभी ना त्यागना चाहिए यदि स्वधर्म का पालन करोगे तो असुर गणो की तरह रक्षा कर सकते हो और त्याग करने पर उन्ही की तरह नष्ट होना पड़ेगा ऐसा पुराण वर्णन करते हैं।

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