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शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

आत्मदेव ब्राह्मण की कथा pandit aatma dev ki katha

आत्मदेव ब्राह्मण की कथा pandit aatma dev ki katha

श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित पंडित आत्म देव की कथा

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श्रीमद्भागवत महापुराण के महात्म में एक बहुत सुंदर कथा आती है, जो कि पद्म पुराण से लि गयाी है |

पंडित आत्मदेव का वृतांत है आपने पहले भी कई बार श्रवण किया होगा उनकी कथा को जी हां उन्हीं के पुत्र गोकर्ण जी और धुंधकारी हुए जो कि गौकर्ण जी महान पंडित ज्ञानी हुए और धुंधकारी बहुत दुष्ट स्वभाव का हुआ |

तो आयिये पाप नाशक भक्ति प्रदायक पावन चरित्र को श्रवण करते हैं पढ़ते हैं |

इतिहास की बड़ी पुरानी बात है कि तुंगभद्रा नदी के तट पर एक उत्तम नाम का नगर था, उस नगर पर आत्मदेव नामक एक बड़े ही विद्वान व धार्मिक ब्राम्हण रहा रहते थे |

उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी विशाल वैभव था फिर भी वह ब्राह्मण अपना भिक्षावृत्ति से जीवन यापन कर रहे थे |

उन आत्म देव पंडित जी की धर्मपत्नी का नाम धुंधली था यह धुंधली भी उत्तम कुल से थी लेकिन उसका स्वभाव बड़ा विचित्र था यह कंजूस झगड़ालू किशम की थी, लड़ने झगड़ने में ज्यादा रहती थी, बोलती बहुत थी |

लेकिन यह सब कर्म वह दूसरों पड़ोसियों के लिए होता था , पंडित आदमी देव के लिए वह उसी प्रकार शांत रहती थी |

इस प्रकार पंडित आत्मदेव जी के जीवन में सभी प्रकार का सुख था लेकिन कहते हैं ना कि दुख किसी का पीछा नहीं छोड़ता क्योंकि-
इस संसार का दूसरा नाम ही दुखालय है |

तो पंडित आदमी देव को भी एक महान दुख था कि हमारे पास सब सुख हैं सब साधन है लेकिन बड़े दुख की बात है कि हमारे संतान नहीं है |

 तो संतान के दुख के कारण वह निरंतर दुखी रहते थे एक बार की बात है कि वह इतना दुखी हो गए कि घर द्वार छोड़ दिए और वन को चले गए | वहां जाकर वह निर्जन वन में एक तालाब के किनारे बैठ कर रोने लगे |

दैव योग से उसी मार्ग मे सामने से एक सन्यासी बाबा आते हुए दिखाई दिए उन्होंने उस रोते हुए ब्राह्मण को देखा तो उनके पास उसके दुख का कारण जानने के लिए पहुंचे |

क्योंकि संत तो होते ही हैं संसार के प्राणियों के दुख को दूर करने के लिए,  संतों का हृदय बड़ा कोमल होता है- तो सन्यासी महात्मा ने विचार किया कि जंगल में अगर कोई रो रहा है तो किसी सांसारिक पदार्थों के लिए तो रोएगा नहीं ? कोई भगवत भक्त है जो भगवान के लिए रो रहा है तो चलिए उसको मार्ग बताते हैं |

संन्यासी महात्मा आए ब्राह्मण देवता से पूछा कि क्यों रो रहे हो भाई, उन्होंने सारा वृत्तांत बताया कि मैं पुत्र के कारण रो रहा हूं |

सर्वप्रथम सन्यासी महात्मा ने तो पंडित जी को समझाया कि देखो ब्राह्मण देवता इस संसार में पुत्र मिलने पर सुख मिलेगा यह कहां लिखा है ?

आपने इतिहास में पढ़ा है कि राजा सगर के 60000 पुत्र थे परंतु उन साठ हजार पुत्रों में से एक पुत्र से भी उनको सुख की प्राप्ति नहीं हो सकी, इसलिए पुत्र की अभिलाषा त्याग दीजिए और भगवत भजन कीजिए उसी में सब का सार है |

पंडित आत्मदेव ने सन्यासी महात्मा से हट किया कि नहीं महाराज मेरा जो दुख है यह पुत्र प्राप्ति के बाद ही दूर होगा | सन्यासी महात्मा ने जब देखा कि ब्राह्मण बहुत हट कर रहे हैं तब उन्होंने उनकी मस्तक की रेखा देखकर उनका भविष्य बता दिया कि शायद बैराग हो जाए |

उन्होंने कहा देखो ब्राह्मण देवता मैं तुम्हारी मस्तक की रेखा देखकर जान गया हूं कि सात जन्मो तक कोई पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी तुमको |

अब भगवत भजन करो - अब तो संन्यासी महात्मा की इस भविष्यफल को सुन कर पंडित आत्म देव और जोर-जोर से अपना सर पकड़ कर रोने लगे-
 बार-बार सर पृथ्वी पर पटकने लगे |

क्योंकि वह समझ गए थे कि जो संन्यासी महात्मा के अंदर इतनी समर्थ है कि वह सात जन्मों तक के भविष्य को देख सकता है तो पुत्र भी प्रदान कर सकता है |

सर फोडने लगे जमीन पर पटक पटक कर कहने लगे कि महाराज मैं अभी प्राण दे दूंगा अगर आपने मुझे पुत्र नहीं दिया |

समझ गए सन्यासी महात्मा किया ब्राह्मण हट कर रहे हैं इनको चलो यह भी दिखा देते हैं कि संसार में कैसे-कैसे पुत्र होते हैं | उन्होंने फल दिया कहा कि ब्राह्मण देवता इस फल को अपनी पत्नी को खिला देना और वह है जो गर्भ के समय भगवत नाम लेते रहेगी तो जरूर एक उत्तम पुत्र होगा जो तुम्हें सुख प्रदान करेगा और तुम्हारा कल्याण करेगा |

ब्राह्मण देवता बड़े प्रसन्न हुए घर आए और वह फल अपनी पत्नी धुंधली को दे दिया | देवी ने कहा बाद में खा लूंगी स्नान ध्यान करके |

और वह सहेलियों के पास बैठकर अनेकों प्रकार के तर्क वितर्क करके वह फल ना खाने का विचार कर के घर में एक जगह छुपा कर रख दी पति से झूठ बोल दी कि मैंने फल खा लिया है |

कुछ दिनों बाद उसकी बहन आई उसके घर उसने देखा कि धुंधली बड़ी दुबली पतली होती जा रही है और उदास भी रहती है उसने पूछा कारण तो सारा वृत्तांत कह सुनाया | उसकी बहन जो थी वह भी बड़ी लालची थी उसने कहा देखो बहन मेरे पेट में जो गर्भ है, जो संतान होगी मैं उसे तुमको दे दूंगी उसके बदले तुम मुझे धन दे देना |

 तब तक तुम नाटक करते रहो कि मुझे गर्भ हो चुका है और वह फल जो है उसकी भी परीक्षा कर लेते हैं जो महात्मा ने दिया था |

कि क्या वह फल संतान प्रदान करने का सामर्थ्य रखता है, ऐसा करो कि तुम्हारी जो गाय है बंध्या है, वह भी बहुत सालों से बच्चा नहीं दे रही तो वह फल उसे खिला दो वह फल जाकर गाय माता को खिला दिया |

धीरे-धीरे समय बीता धुंधली के बहन को बालक हुआ और वह बालक गुप्त रूप से धुंधली के घर पहुंचा दिया गया और धुंधली के यहां हल्ला हो गया कि बालक हुआ बेटा हुआ |

आत्मदेव सुन कर बड़े प्रसन्न हुए 
नाचने गाने लगे ब्राह्मणों को दान दिया, नामकरण जब होने लगा तो धुंधली सामने खड़ी हो गई कि महाराज 9 महीने तक मैंने कष्ट उठाया है नाम में रखूंगी मेरा नाम धुंधली तो मेरे पुत्र का नाम धुंधकारी होगा |

ठीक 3 महीने बाद गाय ने भी एक सुंदर मनुष्य के बच्चे को जन्म दिया सिर्फ उसके कान जो थे वह गाय के समान थे |

बाकि पूरा शरीर मनुष्य की तरह था पंडित आत्म देव ने उनका भी नामकरण रखा उस गाय के बच्चे का पूरा शरीर मनुष्य का था लेकिन कान गाय के समान थे इसलिए उनका नाम गौकर्ण रखा |

गांव वाले ने जब यह सुना तो दूर दूर से लोग आते उस गाय के बालक को देखने और महाराज को बधाई देते |

यह बालक आगे चलकर बड़े हुए तो एक तो महान पंडित ज्ञानी हुए जो गाय से जन्मे थे महात्मा का फल से जिनका जन्म हुआ था | गौकर्ण जी महाराज और दूसरा धुंधकारी था वह महान दुष्ट हुआ लोगों को सताता मारता उसके दुख से दुखी हो आत्मदेव रोने लगे |

तब गौकर्ण जी ने उपदेश दिया 

और वह उपदेश को सुनकर बैराग को पाकर जंगल में चले गए और वहां पर भागवत के दसम स्कन्ध का पाठ करते हुए भगवान को पा  लिया |

आत्मदेव ब्राह्मण की कथा pandit aatma dev ki katha