भागवत कथा का महत्व क्या है? bhagwat puran ka mahatva

भागवत कथा का महत्व क्या है? bhagwat puran ka mahatva

 भागवत कथा का महत्व क्या है? bhagwat puran ka mahatva

भागवत कथा का महत्व क्या है? bhagwat puran ka mahatva


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आज के इस लेख में हम श्रीमद्भागवत् महापुराण के महत्व को जानेंगे क्योंकि किसी भी शास्त्र को पढ़ने से पूर्व उसके महत्व को जानना आवश्यक है।

'माहात्म्य ज्ञान पूर्वकम् श्रद्धा भवति'

यानी महिमा के ज्ञान के पश्चात ही उसमें भक्ति और श्रद्धा उत्पन्न होती है।

श्रीमद् भागवत महापुराण कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जी द्वारा विरचित 18 महापुराण में श्रेष्ठ पुराण है, श्रीमद् भागवत महापुराण में 18000 श्लोक तथा 335 है।

यह पुराण वस्तुतः किसी ने बनाया नहीं परब्रह्म परमात्मा ने अपनी शक्ति से ब्रह्मा जी के हृदय में, ब्रह्मा जी ने नारद जी के हृदय में तथा नारद जी द्वारा वेदव्यास जी के हृदय में इसका दिव्य प्रभाव हुआ है। 

भागवत पुराण जैसा कोई अन्य भक्ति ग्रंथ है ही नही, यह वेद के बराबर पांचवा वेद है। श्रीमद्भागवत् महापुराण शास्त्रो, वेदों, उपनिषदों का सार है।

व्यास जी नारायण के अवतार हैं यह आदि शंकराचार्य जी ने भी निरूपित किया है

वेदों का संकलन, वेदांत, उपनिषद, पुराण आदि अन्यान्य दिव्य ग्रंथो के प्रणय के बाद भी व्यास जी अशांत उद्विग्न थे। 

ब्रह्मा जी से प्रेरित नारद जी ने अशांति का कारण पूछा,व्यास जी की प्रतिभा की सराहना करते हुए कहा कि आपने सब कुछ और बहुत कुछ लिखा है जो संसार के लिए अमूल्य है पर श्री कृष्ण की लीलाओं का यशोगान नहीं किया है अब आप भगवान की भक्ति करो, दर्शन करो, फिर उनकी लीलाओं का वर्णन यशोगान करो तो आपको तो शांति मिलेगी मानवता का भी बहुत बड़ा कल्याण होगा व्यास जी को अपनी कमी का आभाष हो गया, मन प्रफुल्लित हो गया।

वे नारद जी के बताए अनुसार श्री कृष्ण की परम भक्ति कर उनकी लीलाओं का चित्रण/ लेखन करने लगे।

गौरांग महाप्रभु ने कहा था, वेद उपनिषद पढ़कर हमारे शरीर में रोमांस नहीं होता, जिस ग्रंथ में श्री कृष्ण की लीलाएं ना हो वह ब्रह्म के द्वारा कहे जाने पर भी नहीं सुनना चाहता वह कथा बंध्या है,असत है, जिसमें श्री कृष्ण की लीला नहीं

व्यास जी ने पूरी भक्ति और मनोयोग से श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना की है।श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान का साक्षात् स्वरूप है।

भगवान व्यास समान महापुरुषों को जिसकी रचना से शांति मिलती है जिसमें सकाम कर्म,निष्काम कर्म, साधन सिद्ध ज्ञान, साधन भक्ति, साध्य भक्ति, द्वैत, अद्वैत, द्वेताद्वेत आदि सभी का परम रहस्य बड़े ही मधुरता के साथ भरा हुआ है, जो सारे मतभेदों से ऊपर उठा हुआ अथवा सभी मतभेदों का समन्वय करने वाला महान ग्रंथ है।

यह भगवान के मधुरतम प्रेम का छलकता हुआ सागर है "स्वादु स्वादु" "पदे पदे" ऐसा ग्रंथ यह एक ही है।विद्या का तो यह भंडार है ,श्रीमद्भागवत् आशीर्वादिक ग्रंथ है इसमें कई प्रकार के अमोघ प्रयोग का उल्लेख है जैसे नारायण कवच, पुंसवन व्रत, गजेंद्र स्तवन,पयोव्रत आदि इन सब साधनों का भगवत प्रेम या भगवत प्राप्ति के लिए निष्काम भाव से प्रयोग किया जाए तो भगवत प्राप्ति के पथ में बड़ी सहायता मिलती है तथा अनेक मनोरथ की सिद्धि होती है।

यह पवित्र ग्रंथ मनुष्य मात्र का उपकारी है ज्ञान,भक्ति, वैराग्य का यह इतना विशाल समुद्र है, कि जब तक मनुष्य भागवत को पढ़े नहीं और इसमें श्रद्धा ना हो तब तक वह नहीं समझ सकता।


श्रीमद्भागवत् धर्म,भक्ति लोक कल्याण और आदर्श समाज का उत्कृष्टतम दिव्य ग्रंथ है, इसलिए इसे भगवान का शब्द विग्रह भी कहते हैं।

श्रीमद् भागवत के प्रथम श्लोक मैं ही वेदव्यास जी ने परम ब्रह्म की विराट सत्ता का दिग्दर्शन कराया है।

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम:।।

जो शाश्वत सत्य है, सत्य स्वरूप है, सत्य स्वरूप से ब्रह्मांड के हर कण में व्याप्त है। चित्त अर्थात प्रकाशक है, उसकी प्रकाश ज्योति सारे ब्रह्मांड को आलौकित करती है और जो आनंद का मूर्तमान स्वरूप है जो दिव्य आनंद है उसके अतिरिक्त कहीं आनंद नहीं। ब्रह्मांड में जहां भी आनंद की सृष्टि होती है परमात्मा की ही कृपा उनका ही दिव्य वरदान है ऐसे परब्रम्ह श्रीकृष्णा की वंदना पहले की है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने ब्रह्मा श्री राम को कहा है-

जो आनंद सिंधु सुखरासी।
सीकर ते त्रैलोक सुपासी॥
सो सुखधाम राम अस नामा।
अखिल लोक दायक बिश्रामा॥


मोक्ष का मार्ग: श्रीमद्भागवत महापुराण कर्म, ज्ञान और भक्ति के मार्गों द्वारा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दर्शाता है।

  1. आध्यात्मिक जीवन: यह ग्रंथ आध्यात्मिक जीवन जीने की शिक्षा देता है, जिसमें कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग का समावेश है।
  2. नैतिक मूल्य: श्रीमद्भागवत महापुराण सदाचार, नीति, और कर्तव्य जैसे नैतिक मूल्यों का शिक्षण देता है।
  3. जीवनशैली पर प्रभाव:- सकारात्मक सोच: यह ग्रंथ सकारात्मक सोच, क्षमा, और दया का संदेश देता है।
  4. अंतर्मुखी: श्रीमद्भागवत महापुराण आत्म-अवलोकन और आत्म-साक्षात्कार को प्रोत्साहित करता है।
संसार से वैराग्य: यह ग्रंथ लौकिक जीवन से वैराग्य और आध्यात्मिक जीवन पर ध्यान केंद्रित करने का संदेश देता है।

समाज सेवा: श्रीमद्भागवत महापुराण परोपकार और समाज सेवा को प्रोत्साहित करता है।

सांस्कृतिक महत्व:- हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण: श्रीमद्भागवत महापुराण हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

भक्ति परंपरा यह ग्रंथ वैष्णव भक्ति परंपरा का आधार है।


कला और साहित्य: श्रीमद्भागवत महापुराण ने कला, साहित्य, संगीत और नृत्य को प्रेरित किया है।

सामाजिक मूल्य: यह ग्रंथ समानता, भाईचारा और समाजिक न्याय जैसे सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष: श्रीमद्भागवत महापुराण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक पूर्ण व्यवस्था भी है। यह हमें आध्यात्मिक ज्ञान, नैतिक मूल्यों और सकारात्मक जीवनशैली का मार्ग दिखाता है।
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