F राम कथा प्रवचन रामायण Shri Ram Katha / Day- 1 - Ram Deshik Prashikshan
राम कथा प्रवचन रामायण Shri Ram Katha / Day- 1

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राम कथा प्रवचन रामायण Shri Ram Katha / Day- 1

 राम कथा प्रवचन रामायण Shri Ram Katha / Day- 1

 राम कथा प्रवचन रामायण Shri Ram Katha / Day- 1 

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इस संसार में सबसे कठिन है सुनना। कोई सुनना नहीं चाहता सब सुनाना चाहते हैं। बाप परेशान है बेटे से की बेटा सुनता नहीं है, बेटा परेशान है बाप से की बाबूजी सुनते नहीं है। पत्नी परेशान है पति से कि वह सुनते नहीं हैं। पति परेशानी पत्नी से कि वह सुनती नहीं है।

जो नहीं सुनता है उसको सुख नहीं मिलता है। जो नहीं सुने वह सब देव रह गए। जिन्होंने कथा नहीं सुन पाई वह देवता योनि में रहे तो लेकिन सब देवता ही रह गए और जिन्होंने कथा सुन ली वह देवों के देव महादेव हो गए। बंधु माताओं जो कथा सुनता है वह परम सुख को प्राप्त करता है।

राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम प्रभु की भद्रता का
सभ्यता का ध्यान धरिये, ध्यान धरिये

राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम प्रभु की भद्रता का
सभ्यता का ध्यान धरिये, ध्यान धरिये

राम के गुण गुणचिरंतन
राम के गुण गुणचिरंतन
राम.. राम.. राम.. राम..
हो राम के गुण गुणचिरंतन
राम गुण सुमिरन रतन धन
मनुजता को कर विभूषित
मनुज को धनवान करिए, ध्यान धरिये

राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए..

सगुण ब्रह्म स्वरुप सुन्दर
सगुण ब्रह्म स्वरुप सुन्दर
सुजन रंजन रूप सुखकर
हो सुजन रंजन रूप सुखकर
राम आत्माराम
आत्माराम का सम्मान करिए, ध्यान धरिये

राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम प्रभु की भद्रता का
सभ्यता का ध्यान धरिये, ध्यान धरिये

भगवान शंकर त्रेता युग में कुंभज ऋषि के यहां गए अकेले नहीं गए मैया को साथ में लेकर के गए।

संग सती जग जननि भवानी।

सती जी को साथ में लेकर के गए। क्यों ? इसीलिए वह सबसे बड़े गृहस्ती कहे गए। सती जी ने कहा वाह रे प्रभु आपको और कोई कथा वाचक नहीं मिला अब आप कुम्भज से कथा सुनेंगे।

कुम्भज यानी- कुम्भात जायते इति कुम्भजः। कुंभ से जो प्रकट होता है वह कुंभज कहलाता है। कुंभ यानी घड़ा।

भगवान शंकर जब कुंभज ऋषि के यहां गए तो अखिलेश्वर समझ कर कुंभज ऋषि ने उनका पूजन किया। कुंभज ऋषि वक्ता हैं। भोलेनाथ श्रोता हैं, तो वक्ता ही श्रोता की पूजा करने लगे तो यह देखकर सती जी आश्चर्यचकित हो गई।

उनके मन में यह आ गया कि अरे यह कथा क्या सुन पाएंगे। पता नहीं मेरे नाथ कैसे कथा वाचक के पास लेकर के आ गए हैं। भगवान शंकर ने कुंभज ऋषि से श्री रामजी की कथा बड़े प्रेम के साथ सुनी और उनको बहुत सुख मिला।

सज्जनों असली कथा वाचक तो घड़ा ही होता है क्यों क्योंकि राम कथा समुद्र के समान है इसको किसी में भरा नहीं जा सकता है। रघुवीर चरित्र अपार है इसका कोई पार नहीं पा सकता और समुद्र की जब कोई थाह ही नहीं पा सकता है तो समुद्र का लाभ उसको मिलेगा कैसे?

भगवान शंकर की दृष्टि में तो यह है की असली कथा वाचक तो घडा़ ही हो सकता है जो राम कथा रूपी सागर को घडे़ में भर के हमको पिला दिया।

कथा सुनने के बाद भगवान शंकर के मन में यह इच्छा प्रकट हुई कि अब अगर मेरे ईस्ट प्रभु श्री राम का दर्शन हो जाता तो बहुत अच्छा होता। 

इसीलिए यह त्रेता युग की कथा है।

सज्जनों एक समय में दो कथा चल रही हैं भगवान शंकर श्री राम कथा सुनकर कुंभज ऋषि के द्वारा निकल रहे हैं और श्री रामचंद्र जी स्वयं वनवास के दौरान माता सीता को रावण द्वारा हर ले जाने पर विलाप करते हुए एक वन से दूसरे वन उनको ढूंढ रहे हैं लीला करते हुए।

भगवान शंकर ने जैसे ही प्रभु श्री रामचंद्र जी को देखा वैसे ही तुरंत उनको दूर से ही प्रणाम किया। पास में नहीं गए उसके कई कारण है। जिनमें से प्रधान कारण यह है कि प्रभु इस समय लीला कर रहे हैं अगर मैं वहां जाऊंगा तो सारा भेद खुल जाएगा।

इसलिए भगवान शंकर ने दूर से ही प्रभु श्री रामचंद्र जी को प्रणाम करते हुए उनकी जय जयकार करने लगे-

जय सच्चिदानंद जग पावन। 
अस कह चले मनोज नसावन।।

सती जी ने कहा कि यह कौन है जिनकी आप जय जयकार कर रहे हैं ? भगवान शंकर ने कहा देवी यही मेरे ईस्ट हैं, यही रघुवीर हैं, यही श्री रामचंद्र जी हैं।

यही अखिल कोटि ब्रह्मांड का नायक हैं, यही सच्चिदानंद हैं, इनको प्रणाम करिए । सती जी ने कहा यह सच्चिदानंद है? भोलेनाथ ने कहा हां। सती ने कहा नहीं यह सच्चिदानंद नहीं हो सकते। जो अपनी पत्नी के वियोग में आंसू बहा रहे हैं वह सच्चिदानंद कैसे हो सकते हैं।

भगवान राम वन में नर लीला कर रहे हैं पत्नी वियोग में बड़े दुखी हैं- भगवान श्री राम वन में वृक्षों लताओं से पूछ रहे हैं कि क्या आपने मेरी सीता को देखा है और प्रभु की यह लीला को देखकर सती जी के अन्दर संदेह हो गया।

भगवान शंकर समझ गए की सती के अंदर संदेह हो गया है और उनके संदेह को मैं दूर करूं यह संभव नहीं है क्योंकि मेरे समझाने पर इनका संदेह दूर नहीं होने वाला। तब भगवान शंकर ने कहा कि देवी-

जो तुम्हरे मन अति संदेहू। 
तो किमि जाइ परीक्षा लेहू।।

जो तुम्हारे मन में संदेह है तो जाइए देवी आप परीक्षा लेकर के आइये। सती ने कहा कि प्रभु चलिए आप भी चलिए। भगवान शंकर ने कहा नहीं आप जाइए हम इसी वटवृक्ष के नीचे बैठे हैं आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

भगवान शंकर को इसलिए विश्वास का प्रतीक कहा गया है। इसीलिए वह वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। वटवृक्ष क्या है मानस में-

राम कथा प्रवचन रामायण Shri Ram Katha / Day- 1 

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