श्रीमद् भागवत कथा 7 दिन की क्यों होती है ? Why is Shrimad Bhagwat Katha of 7 days?
श्रीमद् भागवत कथा 7 दिन की क्यों होती है, इसके पीछे कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं हैं:
सृष्टि का चक्र: हिंदू धर्म में, सृष्टि का चक्र 7 दिनों में पूर्ण होता है। प्रत्येक दिन ब्रह्मा जी के एक कल्प के समान होता है। 7 दिन की कथा सुनने से व्यक्ति को सृष्टि के रहस्यों और जीवन के चक्र को समझने में मदद मिलती है।
- सप्त ऋषि: प्राचीन काल में, 7 ऋषि (वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, अत्रि, भारद्वाज और वामदेव) वेदों का ज्ञान बांटते थे। 7 दिन की कथा इन 7 ऋषियों के 7 ज्ञान दिवसों का प्रतीक है।
- सात लोक: हिंदू धर्म में 7 लोक माने जाते हैं - भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्ग, मृत्युलोक, नरक, पाताल और महर्लोक 7 दिन की कथा इन 7 लोकों के रहस्यों और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है।
- सप्त चक्र: योग में, शरीर में 7 मुख्य चक्र होते हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार। 7 दिन की कथा इन 7 चक्रों को जागृत करने और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती है।
सप्ताह का महत्व: हिंदू धर्म में, सप्ताह के प्रत्येक दिन का एक अलग देवता से संबंध होता है। 7 दिन की कथा सुनने से इन सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
महाराज परीक्षित ने कलयुग को रहने के लिए चार स्थान दिए थे जहाँ जुआ सट्टा खेला जाता है वहां झूठ के रूप में, व्यभिचार होता है वहां काम के रूप में, जहाँ हिंसा होती हो वहाँ रजोगुण के रूप में निवास करता है।
तब कलयुग ने कहा महाराज यह चारों स्थान तो आपके राज्य में नहीं है इसलिए मुझे रहने का कोई और स्थान दीजिए महाराज परीक्षित में पांचवा स्थान स्वर्ण दिया।
भगवान श्री कृष्ण 11वें स्कंध में कहते हैं कि धातुओं में मैं कंचन यानी सोना हूँ लेकिन अधर्म के द्वारा जो कमाया जाए उसमें कलयुग का वास होता है,मेहनत से धर्मपूवर्क कमाया जाए भगवान को समर्पित करके धारण किया जाए उसमे भगवान का वास होता है।
एक दिन महाराज परीक्षित में जरासंध का वह मुकुट जो जरासंध ने अनेको अपराधो नरपतियों की बलि देकर उनके धन से बनवाया था।
जरासन्ध की मृत्यु के पश्चात भीमसेन अपने साथ ले आए थे,उस मुकुट को धारण कर महाराज परीक्षित शिकार खेलने गए शिकार खेलते खेलते मध्यान्ह हो गया और महाराज परीक्षित को भूख प्यास लगी थी।
जब समीप कोई जलाशय ना दिखा एक आश्रम में गए वह ऋषि समिक का आश्रम था, ऋषि समिक समाधिस्थ थे।
महाराज परीक्षित ने उनसे ऐसी अवस्था में जल की याचना की जब ऋषि समिक ने कोई उत्तर नहीं दिया तो परीक्षित ने यह समझा कि झूठ आंख बंद करके बैठे हैं एक मरा हुआ साँप उठाया और उनके गले में डाल दिया तब भी ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो राजा परीक्षित अपने राज लौट आए।
खेलते हुए बालको के साथ ऋषि समिक के पुत्र श्रृंगी ने सुना तो बड़े ही क्रोधित हुए और इस समय कौशिक के जल से आचमन किया और महाराज परीक्षित को श्राप दे दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से महाराज परीक्षित की मृत्यु हो जाएगी।
महाराज परीक्षित ने उनसे ऐसी अवस्था में जल की याचना की जब ऋषि समिक ने कोई उत्तर नहीं दिया तो परीक्षित ने यह समझा कि झूठ आंख बंद करके बैठे हैं एक मरा हुआ साँप उठाया और उनके गले में डाल दिया तब भी ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो राजा परीक्षित अपने राज लौट आए।
खेलते हुए बालको के साथ ऋषि समिक के पुत्र श्रृंगी ने सुना तो बड़े ही क्रोधित हुए और इस समय कौशिक के जल से आचमन किया और महाराज परीक्षित को श्राप दे दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से महाराज परीक्षित की मृत्यु हो जाएगी।
जब यह बात ऋषि समिक को पता चली तो बड़े ही दुखी हुए और अपने एक शिष्य को महाराज परीक्षित के पास भेजा, यहां महाराज परीक्षित ने जैसे ही मुकुट उतारा विचार करने लगे कि मुझसे ऋषि का अपराध हुआ है।
जब ऋषि के द्वारा श्राप दिए जाने की बात पता चली तो, महाराज अपने पुत्र जनमेजय को राज्य सौंप कर गंगा तट सुखताल में आकर बैठ गए बहुत से ऋषि मुनि वहां पधारे महाराज परीक्षित ने सबका स्वागत सत्कार किया और उनसे प्रश्न किया की जो सर्वथा मृतमाण हो उसे क्या करना चाहिए ?
उसी समय व्यास पुत्र भगवान शुकदेव जी प्रकट हुए, महाराज परीक्षित ने उनका पूजन किया उत्तम आसन में बैठाया और उनसे प्रश्न किया, हे गुरुदेव जो सर्वथा मृतमाण है जिनकी मृत्यु सात दिन में होने वाली है ऐसे पुरुष को क्या करना चाहिए? किसका श्रवण करना चाहिए ? किसका कीर्तन करना चाहिए?
महाराज परीक्षित के इस प्रश्न को सुनकर श्री शुकदेव जी उनके प्रश्न की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुमने लोकहित के लिए बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है मनुष्य जन्म का परम लाभ यही है कि अंत समय भगवान नारायण की स्तुति बनी रहे।
10 लक्षणों से युक्त श्रीमद् भागवत महापुराण को ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाया अब मैं तुम्हें सुनाता हूं इस प्रकार से शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को 7 दिन में भागवत महापुराण की कथा सुनायी और 7 दिन के पश्चात महाराज परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई, इसीलिए श्रीमद्भागवत कथा 7 दिन की जाती की है।
निष्कर्ष: धार्मिक मान्यताओं के अलावा, 7 दिन की कथा सुनने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान, शांति और जीवन में सकारात्मक बदलाव प्राप्त होता है।
यह एक पवित्र अनुभव है जो व्यक्ति को जीवन के सच्चे अर्थ को समझने में मदद करता है।
उसी समय व्यास पुत्र भगवान शुकदेव जी प्रकट हुए, महाराज परीक्षित ने उनका पूजन किया उत्तम आसन में बैठाया और उनसे प्रश्न किया, हे गुरुदेव जो सर्वथा मृतमाण है जिनकी मृत्यु सात दिन में होने वाली है ऐसे पुरुष को क्या करना चाहिए? किसका श्रवण करना चाहिए ? किसका कीर्तन करना चाहिए?
महाराज परीक्षित के इस प्रश्न को सुनकर श्री शुकदेव जी उनके प्रश्न की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुमने लोकहित के लिए बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है मनुष्य जन्म का परम लाभ यही है कि अंत समय भगवान नारायण की स्तुति बनी रहे।
10 लक्षणों से युक्त श्रीमद् भागवत महापुराण को ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाया अब मैं तुम्हें सुनाता हूं इस प्रकार से शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को 7 दिन में भागवत महापुराण की कथा सुनायी और 7 दिन के पश्चात महाराज परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई, इसीलिए श्रीमद्भागवत कथा 7 दिन की जाती की है।
निष्कर्ष: धार्मिक मान्यताओं के अलावा, 7 दिन की कथा सुनने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान, शांति और जीवन में सकारात्मक बदलाव प्राप्त होता है।
यह एक पवित्र अनुभव है जो व्यक्ति को जीवन के सच्चे अर्थ को समझने में मदद करता है।