श्री राम कथा हिंदी ram katha in hindi
नाम का प्रेम रस
समझने में नाम और नामी दोनों सरल हैं, दोनों की आपस में प्रीति है और दोनों प्रभु के साथी हैं । नाम और रूप प्रभु की दो ऐसी उपाधी हैं जो दोनों ही अकथ और अनादी हैंजिसको साधना करने वाले साधुजन ही भली-भाँति समझते हैं ।
जब नाम और रूप दोनों एक ही ईश्वर के हैं तो छोटा-बड़ा कहना अपराध है किन्तु नाम गुण और रूप के रहस्य को सुनकर साधु जन ही समझेंगे। वे रूप को नाम के आधीन देखेंगे क्योंकि रूप का ज्ञान भी नाम के बिना नहीं होता ।
हाथ में रखी वस्तु की पहचान नाम के जाने बिना नहीं होती । रूप के बिना देखे भी यदि नाम के सुमिरण में प्रेम हो जाय तो विशेष प्रेम के कारण रूप भी ध्यान में आ जाता है।
नाम और रूप की गति अकथनीय है यह समझने पर ही सुख दाई है, कहने में नहीं आती। अगुण- सगुण, व्यक्त-अव्यक्त इन दोनों रूपों का साक्षी एवं दोनों का बोध कराने वाला नाम ही चतुर दुभाषी है ।
सो हे तुलसी ! यदि तूं भीतर और बाहर उजाला चाहता है तो नाम मणि के प्रकाशमान दीपक को प्राणों के द्वार की देहली भृकुटी में धारण कर । ।। द० ।।
संसार रूपी रात्रि की मोह रूपी निद्रा से योगीजन नाम को हृदय में जपकर ही जागते हैं। नाम के विशेष प्रेम और योग से ब्रह्मा ने विश्व की रचना की है। नाम स्मरण से ही ब्रह्म का अनुभव एवं अनुपम परम सुख की प्राप्ति होती है ।
वह नाम अकथ है एवं रूप भी रचना से न्यारा है । नाम का निरूपण यत्न करने पर नाम द्वारा ही हो सकता है जिस प्रकार रत्न से ही उसका मूल्य प्रगट होता है । नाम की गूढ़गति को जानना चाहें तो हृदय में जपकर जान सकते हैं। वह प्रभु सृष्टि से पहले बिना जन्मे ही प्रगट होता है जिससे सृष्टि उत्पन्न होती है ।
अत्यन्त दुःखी भी जब नाम जपता है तो उस के संकट मिटकर वह सुखी हो है। राम के भक्त जगत् में चार प्रकार के हैं और चारों ही उत्तम कर्म करने वाले पाप रहित उदार चित्त हैं । इन बुद्धिमान भक्तों को नाम का ही आधार है ।
अत्यन्त दुःखी भी जब नाम जपता है तो उस के संकट मिटकर वह सुखी हो है। राम के भक्त जगत् में चार प्रकार के हैं और चारों ही उत्तम कर्म करने वाले पाप रहित उदार चित्त हैं । इन बुद्धिमान भक्तों को नाम का ही आधार है ।
किन्तु नाम के प्रभाव को जानने वाला ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष प्यारा है। जो साधक नाम में लीन होकर लौ लगाए जपते हैं वे अनुलघु और दीर्घ प्राण की गति की समानता पाकर सिद्ध हो जाते हैं ।
श्री राम कथा हिंदी ram katha in hindi
नाम का प्रेम रस
सकल कामना हीन जे, राम भक्ति रस लीन ।
नाम सप्रेम पियूस हृद, तिनहुं किये मन मीन ।।
रसामृत में जो सभी कामनाओं से रहित होकर राम भक्ति के नाम रूपी लीन हैं । जिन्हों ने अपने हृदय में नाम के प्रेम रूपी रस में मन को मछली की भांति डुबोया हुआ है । ।। दे१।।
मैं अपने विश्वास, प्रेम और रुचि के अनुसार कहता हूँ । बृद्ध संत जन ही मुझ दास के हृदय की जानते हैं । जिस प्रकार एक अग्नि लकड़ी में प्रज्वलित है और एक व्यापक है, इसी प्रकार ब्रह्म का विचार है ।
व्यक्त और अव्यक्त दो ब्रह्म के स्वरूप हैं, ये दोनों ही अकथ, अगाध और अनुपम हैं । मेरे मत से इन दोनों व्यक्त और अव्यक्त रूपों में नाम बड़ा है जिसने अपने बल पर दोनों को अपने वश किया है। वह अव्यक्त प्रभु नाम से ही व्यक्त होता है ।
प्रभु के दोनों रूप अगम हैं परन्तु नाम से सुगम हैं । इसलिए मैंने नाम को ब्रह्म और राम से अर्थात् राम के व्यक्त और अव्यक्त रूप से बड़ा कहा है। एक ही ब्रह्म सर्व व्यापक विभु - अविनाशी सत, चेतन और आनन्द स्वरूप है।
प्रभु के दोनों रूप अगम हैं परन्तु नाम से सुगम हैं । इसलिए मैंने नाम को ब्रह्म और राम से अर्थात् राम के व्यक्त और अव्यक्त रूप से बड़ा कहा है। एक ही ब्रह्म सर्व व्यापक विभु - अविनाशी सत, चेतन और आनन्द स्वरूप है।
ऐसा विकार रहित प्रभु सभी के हृदय में है तब भी सब जीव दीन और दुःखी हैं परन्तु भक्त जन प्रेम सहित नाम जपते ही बिना प्रयास के मोद और मंगल में बास करते हैं । नाम के बिना नामी रक्षा नहीं करता ।
इस प्रकार व्यापक - सत चित आनंद स्वरूप ब्रह्म से नाम का प्रभाव अत्यन्त बड़ा है। अब मैं अपने विचार से देहधारी राजा दशरथ के पुत्र राम से नाम किस प्रकार बड़ा है कहता हूँ । ।। द२ ।।
राम ने भक्तों के हित के लिए मनुष्य देह धारण करके स्वयं कष्ट सहन कर साधुओं को सुखी किया और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने हेतु सुकेत की पुत्री ताड़िका एवं उसके पुत्र सुबाहु को सेना सहित समाप्त किया ।
इस प्रकार व्यापक - सत चित आनंद स्वरूप ब्रह्म से नाम का प्रभाव अत्यन्त बड़ा है। अब मैं अपने विचार से देहधारी राजा दशरथ के पुत्र राम से नाम किस प्रकार बड़ा है कहता हूँ । ।। द२ ।।
राम ने भक्तों के हित के लिए मनुष्य देह धारण करके स्वयं कष्ट सहन कर साधुओं को सुखी किया और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने हेतु सुकेत की पुत्री ताड़िका एवं उसके पुत्र सुबाहु को सेना सहित समाप्त किया ।
परन्तु नाम भक्तों के दोष, दुख और सब बुरी आशाओं को ऐसे नष्ट कर देता है, जैसे सूर्य रात्रि के अंधकार को ।
मैं नाम की बड़ाई कहां तक करूं ! राम स्वयं भी नाम के गुणों को न गा सके। क्योंकि राम जीवन भर मुनियों की रखा करने में ही लगे रहे। नाम के गुण तो संत जन गाते हैं, राम भक्तों के गुण ही गाते हैं ।