संपूर्ण रामायण कथा हिंदी में sampurna ramayan katha hindi

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सज्जनों इस दुनिया में माता के समान और कोई नहीं हो सकता माता ने उनको पहचाना और उनको सम्मान दिया। माता सती ने कहा कि हे मां मुझे यज्ञ भूमि का दर्शन कराओ विलंब ना करो। क्योंकि पिता ने यज्ञ किया है तो यज्ञ भूमि को देखने के लिए मन में बड़ा उतावलापन है माता सती के।


बंधु माताओ माता सती यज्ञ भूमि पर गई है यज्ञ भूमि की परिक्रमा की है। पूरे यज्ञ भूमि पर विचरण कर रही है चारों ओर देख रही हैं उन्होंने देखा कि सभी देवताओं का स्थान भाग है लेकिन मेरे स्वामी मेरे नाथ महादेव का कहीं भी स्थान नहीं दिखाई दे रहा।

तब अपने पिता के सेवकों को बुलाकर उन्होंने पूछा कि भगवान शंकर का स्थान कहां पर है ? सेवकों ने कहा मैया आपके पिता ने भोलेनाथ का भाग - स्थान इस यज्ञ में नहीं रखा है। भोलेनाथ को उन्होंने अपने यज्ञ में किसी भी प्रकार का कोई स्थान नहीं दिया है।

और बंधु माता यह सुनते ही सती जी कांप गई उनका पूरा शरीर क्रोध की अग्नि से जलने लग गय माता सती एक क्रोधित होकर कहने लगी कि अभिषेक को कोई भी पूर्ण नहीं कर सकता है।

मेरे पिता ही क्यों ना हो अब उनकी भी वही गति होगी जो शिवद्रोही की होती है। भगवान का अपमान मेरे शंभू नाथ का अपमान दाहिने पैर के अंगूठे को धरती पर रगड़ा है योगाग्नि प्रकट हुई है उसी योगाग्नि में माता सती ने अपने शरीर को स्वाहा कर दिया।

पूरा शरीर जलकर भस्म हो गया। जो शरीर मेरे पति के सम्मान की रक्षा न कर सके। मेरे शंभू नाथ के सम्मान की रक्षा न कर सके। उस शरीर के रहने का कोई अधिकार नहीं है माता ने अपने शरीर को ही भस्म कर दिया जला करके।

भगवान शंकर को पता चला उन्होंने वीरभद्र को भेज कर पूरे यज्ञ का संघार करवा दिया है। बंधुओ माताओं जो यज्ञ दूसरों को नीचा दिखाने के लिए किया जाता है, किसी को अपमानित करने के लिए, किसी को छोटा दिखाने के लिए जो यज्ञ किया जाता है वह कभी पूरा नहीं होता है उसको कभी सम्मान नहीं मिलता है।

यज्ञ तो सर्वे भवंतु सुखिनः के भावना से किया जाता है।

भगवान शंकर सती के देह त्याग के बाद प्रभु के भजन में ही लगे रहे। सती का अगला जन्म हिमाचलराज और मैंना के घर पार्वती के रूप में हुआ। अब आप पूछेंगे क्यों? तो सुनिए सती जी जब अपने शरीर को त्याग रही थी-

सतीं मरत हरि सन बरु मागा। 
जनम जनम सिव पद अनुरागा।।

शरीर त्यागते समय उनके मन में यही इच्छा थी की जन्म-जन्म शिवजी ही मुझे पति रूप में प्राप्त हों। मुझे भगवान शिव की ही चरण सेवा करने का अवसर बार-बार मिले।
 
इसीलिए वह पर्वत राज हिमालय के घर पार्वती रूप में जन्म लेती हैं। जब से पार्वती देवी का जन्म हुआ नाना प्रकार का वहां पर वैभव प्रगट हो गया। एक बार विचरण करते हुए नारद जी पर्वतराज के घर पर पहुंचे और नारद जी ने पार्वती जी के गुण दोष का बखान किया।

नारद जी ने सब बताया कि आपकी कन्या बड़ी सुलक्षणा है, बड़ी सुकन्या है, बड़ी सुयोग्या है, बड़ी भाग्यशालानी है। बस इसका जो पति होगा वह थोड़ा उदासीन, जटाजूटधारी, नंग धडंग, शमशान निवासी, सांपों का श्रृंगार करने वाला मिलेगा। मैंना मैया ने कहा अभी तो आप कह रहे थे मेरी बेटी बड़ी भाग्यशालानी है और ऐसा पति जिसको मिल जाएगा उसका भाग्य तो फूट ही जाएगा।

नारद जी ने कहा मैया हम क्या करें भाग्य में यही लिखा है तो। हम तो बदल नहीं सकते। हां सुनो अभी आपको यह जो दोष दिख रहे हैं ना इनके होने वाले पति में। तो यह सब अच्छे में बदल जाएंगे आप चिंता मत करो। अगर उनकी शादी भगवान शंकर से हो जाए तो यह सारे अवगुण गुण में परिवर्तित हो जाएंगे।

क्योंकि जितने लक्षण आपको अभी बताए गए यह सारे लक्षण भगवान शंकर में घटित होते हैं और यह अवगुण भी भगवान शंकर के पास जाकर गुणों में परिवर्तित हो जाते हैं।

यह सारे गुण भगवान शंकर में हैं यह विचार कर माता पार्वती बड़ी प्रसन्न हो गई। उन्होंने देवर्षि नारद से निवेदन किया कि हे ऋषिवर मुझे क्या करना होगा? भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए।
तब देवर्षि नारद ने माता मैना से कहा-

जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। 
भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी।।

तपस्या अगर आपकी बेटी करें तो भगवान शंकर आपकी बेटी के भाग्य को विधाता के लेख को बदल सकते हैं। माता पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पिता से आज्ञा लेकर वन में जाकर बड़ी कठोर तपस्या करी है। इतने वर्षों तक उन्होंने तपस्या किया कि उनका तप देखकर बड़े-बड़े तपस्वी भी नतमस्तक हो गए।

बिना कुछ खाये पिये उन्होंने तपस्या किया जिससे उनका एक नाम पड़ गया अपर्णा। पेड़ के पत्तों को खाकर तपस्या करती थी एक समय ऐसा आया कि पेड़ के पत्ते भी खाना बंद कर दिया तब उनका नाम अपर्णा पड़ गया।

यहां भगवान शंकर समाधि में मगन है और एक असुर तारकासुर देवताओं के नाक में दम करके रखा है। सभी देवताओं को कष्ट दे रहा है देवता विचार कर रहे हैं तारकासुर मरेगा तब जब भगवान शंकर विवाह करेंगे और उनके पुत्र होगा और इनका विवाह कब होगा जब यह है समाधि से जागेंगे। 

तो समाधि से इनको कैसे जगाया जाए यह देवता विचार करने लगे।

तो सब देवता कामदेव के पास गए की हे काम तुम जाकर भगवान शंकर की समाधि तोड़ो। काम ने भी विचार किया कि चलो बढ़िया काम मिल गया। वह चला भगवान शंकर की समाधि तोड़ने उसके प्रभाव से सारी सृष्टि कांप गई। लेकिन भगवान शंकर जस के तस समाधि पर ही रहे। तो काम को लगा अरे देवताओं का काम तो अधूरा रह गया अब क्या करें। तो काम के पास जितने भी बांण थे। पांचो बाणों को उन्होंने अपने धनुष पर चढ़ा लिया और जैसे ही वह पांचो बांण भगवान शंकर के हृदय पर लगे वैसे ही।

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