कृष्ण की बाल लीला का वर्णन bal leela krishna leela
आचार्य जीवेश जोशी जी
अब तक हमने भगवान की कई लीलाओं का आनंद लिया किंतु जब तक माखन चोरी की लीला ना सुने ने तब तक लगता ही नहीं कि कृष्ण की कथा का श्रवण किया है। हमारे बाल गोपाल हमारे ठाकुर जी उनकी अब ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है और अब वे ब्रज में माखन चोरी करने लगे हर जगह। जिसके घर में 9 लाख गाय हो वे थोड़े से माखन के लिए गोपियों के इशारों पर नाचता। घरघर जाकर दही माखन की चोरी करता। अच्छा भगवान ने माखन चोरी करी गोपियों का मनोरथ पूर्ण करने के लिए और यह गोपियां कोई सामान्य नहीं है कोई साधारण नहीं है जिन साधु संतों ने हजारों वर्षों तक तपस्या की थी वही साधु संत के रूप में ही गोपियां बनी।
गोपियों के मनोरथ को पूर्ण करने के लिए भगवान माखन चोरी की लीला करते हैं। ठाकुर जी एक एक गोपी के घर जाते और चोरी करते और माखन खाते। अच्छा यह बात भी सत्य है कि बचपन में हम लोग भी जब किसी के घर से अमरूद या आम की चोरी कर कर तोड़ करके खाते थे तो उसका स्वाद ही अद्भुत था। वो स्वाद बाजार से खरीदे गए फलों में मिलता नहीं।
अब हमारे ठाकुर जी ब्रज में बड़े प्रसिद्ध हो गए कि यह नंद बाबा का छोरा माखन चोर है। बोलिए माखन चोर भगवान की जय। एक दिन ब्रज की कई सारी गोपियां इकटठा होकर करके यशोदा मैया के पास आई और आवाज लगाने लगी, अरे यशोदा बाहर आ तेरे लाला ने हमें परेशान कर रखो है। मैया बाहर आई पूछा अरे सब लोग इकट्ठा होकर आए हो क्या हो गया ?
तो एक गोपी बोली तेरा ये लाला हमारे बछड़ों को छोड़ देता है। मैया बोली ये तो अच्छी बात है मेरे लाला तो तुम्हारी सहायता करता है। गोपी ने कहा अरे अरे जब गाय दुहने का समय नहीं होता तभी ये बछड़ों को छोड़ देता है और वह बछड़े सब दूध पी जाते हैं। और जब मैं इससे कहती हूं कि तुझे अगर बछड़ा खोलने का बछड़ा छोड़ने का इतना ही शौक है तो जब गाय दुहने का समय हो तब छोड़ा कर। तो यशोदा ये मुझे आंख दिखाता है, मुझे गुस्सा दिखाता है और बोलता है तेरा कोई नौकर हूं ?
यशोदा मैया बोली देख यह जैसे मेरा लाला है वैसे ही तेरा भी लाला है तू इसे डांट दिया कर, तो गोपी बोली अरे यशोदा मैया मैं जब जब इस पर गुस्सा करूं तो यह भी मुझे आंख दिखाता है और ठाठा करके हंसते हुए भाग जाता है। तो एक दूसरी गोपी ने कहा कि एक दिन तेरा कान्हा मेरे पास आया और कहने लगा, गोपी तेरे पास जितना भी माखन है लेकर के चल अयोध्या से बड़े-बड़े साधु संत पधारे हैं।
जब मैं बाहर आई तो देखा वहां बंदरन की पांत की पांत बैठी भई, मैंने पूछा संत महात्मा कहां है? तो यह बोलता है अरे गोपी तेरी क्या दोनों आंखें फूट गई। त्रेता में इन्होंने राम जी की इतनी सेवा करी, इतनी सहायता करी। अब इनसे बड़ा संत और कौन होगा?
सारा माखन बंदरों को खिला दिया, जब बंदरों का पेट भर गया और उन्होंने माखन खाना बंद कर दिया तो इसने मटका फोड़ दिया और कहने लगा गोपी तेरा यह सारा माखन सर गया है, जा मारे बंदर नहीं खा रहे। मईया हमने तेरे कन्हैया को पकड़ने के लिए कई योजनाएं बनाई पर यह हमें अंगूठा दिखा के भाग जाता।
अंधेरे में माखन रखा तो इसके मणिमय कंगन से प्रकाश हो जाता और यह माखन चोरी कर लेता। हमने माखन ऊपर रखा तो यह अपनी चोरों की टोली को संग लेकर आता और ऊपर चढ़ के माखन का मटका ले लेता। मैया ने कहा यह सब बात मत करो अगर मेरा लाला कोई चोर वोर है तो उसको पकड़ के लाओ रंगे हाथों फिर मैं मानूंगी। तो गोपियों ने शपथ ले ली कि अब तो कन्हैया को पकड़ के रहेगी।
एक गोपी अपनी खाट के नीचे माखन का मटका रख के सो गई। कन्हैया धीरे से आए माखन खाया और उसकी चोटी को खाट से बांध करके उसके कान में जोर से चिल्लाया, गोपी हउआ और वहां से भाग गए। वह गोपी जैसे ही उठी, खाट समेत उठी और गिर पड़ी और भगवान अंगूठा दिखा के भाग गए।
एक गोपी माखन का मटका रख के छुप गई। ठाकुर जी जैसे ही आए तो गोपी ने उन्हें पकड़ लिया और रस्सी से बांधने लगी पर अखिल ब्रह्मांड के रचयिता को कौन बांध सकता है ? तो ठाकुर जी बोले अरे गोपी तुझे रस्सी बांधना ना आए ला मुझे दे मैं सिखाऊं कैसे रस्सी बांधी जाती है। ठाकुर जी ने रस्सी बांधते हुए कहने लगे देख गोपी पहली गठान। गोपी बोली हां ठीक है। दूजी गठान, गोपी बोली हा ठीक है। यह ब्रह्म गठान। गोपी ने कहा हां हां ठीक है मैं सीख गई। अब खोल मुझे। ठाकुर जी बोले हम एक बार किसी को बांध दें तो फिर खोलते नहीं फिर छोड़ते नहीं ,ऐसा बोल के अंगूठा दिखा के चलते बने।
एक एक गोपी माखन का मटका लिए बैठी हुई थी कि कन्हैया आए और मैं उन्हें पकड़ लूं, तब कन्हैया आए और कहने लगे अरे तू यहां बैठी है, तेरी सांस वहां यमुना जी में पानी भरने लगी पैर फिसल गया गिर पड़ी। जल्दी आ बस ऊपर ही पहुंचने वाली है। वह दौड़ी दौड़ी आई और इधर ठाकुर जी सारा माखन खा गए। ग्वाल बाल को खिलाया और जो बचा हुआ माखन था वह आंगन में लीप दिया और जैसे ही वह सास बहू आई दरवाजा खोला पैर रखा तो सर्र से फिसल पड़ी और गिर गई।
अब एक गोपी थोड़ी और होशियार थी तो उसने मटके को ऊपर लटका दिया और उसमें घंटिया बांध दी। अब ठाकुर जी जैसे ही अपनी टीम के साथ आए और घंटी से प्रार्थना करने लगे देख तू बजियो मत। घेरा बना के ग्वाल वाल खड़े हो गए ,ठाकुर जी धीरे धीरे धीरे ऊपर चढ़े और ऊपर चढ़कर के मटकी से माखन निकाल निकाल कर के ग्वाल वालों को खिलाने लगे। देखिए जब भगवान को हम भोग लगाते हैं तो घंटी बजाते हैं ,तो ठाकुर जी यहां भोग लगाने वाले हैं माखन का तो घंटी बिना बचे कैसे रह सकती है? आकाश में ऋषि मुनि भगवान की इस लीला को देखकर वेद मंत्रों का पाठ करने लगे और जैसे ही ठाकुर जी ने माखन खाया तो घंटी टन टन करके बज उठी।
गोपी ने ठाकुर जी को पकड़ लिया और यशोदा मैया के पास ले जाने लगी, रास्ते में ठाकुर जी बोले ए गोपी मेरी नाजुक सी कलाई में दर्द हो रहा है तू ऐसा कर मेरी दूजी कलाई पकड़ ले। अब लंबा घूंघट काढ़े उस गोपी ने दूसरी कलाई पकड़ना चाही तो ठाकुर जी ने धीरे से उसके छोरे का हाथ पकड़ा दिया और दौड़ करके मैया के पास चले गए। गोपी जैसे ही यशोदा मैया के द्वार पर पहुंची बाहर से आवाज लगाने लगी अरे यशोदा बाहर निकल देख मैं तेरे माखन चोर लाला को पकड़ के लाई हूं।
मैया बाहर आई देखा और बोली ए गोपी जरा अपना घूंघट उठा और देख तूने कौन को हाथ पकड़ रखो है, गोपी ने घूंघट उठा के देखा तो अपने छोरे को दो चमाट लगाई और वहां से जाने लगी। तब हमारे नटखट कन्हैया उसके पास गए और पास जाकर के बोले देख गोपी आज तो तेरे छोरे का हाथ मैंने पकड़ायो है अब अगर मुझे पकड़ने की कोशिश भी करी तो तेरे खसम का हाथ तेरे हाथ में पकड़ा दूंगा।
कन्हैया की बहुत शिकायत आने लगी तो ठाकुर जी ने सोचा अब ना जाऊंगा। पहले तो खुद भगवान से प्रार्थना करती है कि कन्हैया हमारे यहां कब आएगा और फिर मैया से शिकायत करती है। अब तो मैं किसी के यहां ना जाऊंगा। जब कई दिनों तक ठाकुर जी माखन चुराने नहीं गए तो एक गोपी गोबर लेने के बहाने से नंद बाबा के महल में आ गई और ठाकुर जी बोले ऐसे फ्री में गोबर ना ले जाने दूंगा, इसके बदले में माखन देना पड़ेगा।
अब दो चार टोकरी ले जाने लगी तो ठाकुर जी बोले अरे मैं गिनती भूल जाऊंगा तू ऐसा कर जितनी बार गोबर ले जाए एक एक टिक्की मेरे गाल पर लगा दिया कर गोबर की। अब सुबह से शाम हो गई मुखंडल गोबर की टिक्कियों से भर गया। ठाकुर जी ने कहा चल गोपी अब माखन दे, गोपी बोली ऐसे ना दूंगी पहले नाच के दिखा। ठाकुर नाचने लगे नाच नाच के थक गए पर गोपी बोले अरे थोड़ी देर और नाच फिर मिलेगा माखन।
बोलिए माखन चोर भगवान की जय
एक दिन ठाकुर जी ने सोचा कि ब्रज का माखन तो खूब खा लिया अब जरा ब्रज की रज का भी स्वाद ले लिया जाए तो तो ठाकुर जी ने एक दिन मिट्टी खा ली और दाऊ दादा और ग्वाल बालों ने देख लिया और मैया से शिकायत कर दी। मैया देख तो कान्हा मिट्टी खा रहा है। मैया ने सांटी उठाई और कन्हैया को पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ने लगी। कन्हैया को पकड़ लिया सच सच बोल कान्हा तूने सच में खाई माटी ?
अरे मैया मैंने माटी नहीं खाई है ये सब झूठ बोल रहे हैं। ये सब के सब झूठे हैं। मैया ने कहा हां हां सब झूठे हैं एक तू ही तो सच्चो है। एक तू ही तो सत्यनारायण का अवतार है ,बाकी सब झूठे हैं। ठाकुर जी बोले मैंने मिट्टी नहीं खाई, मैया बोले खाई है, ठाकुर जी बोले नहीं खाई है। मुख देख लो आप, अब कॉन्फिडेंस में कन्हैया ने कह दिया मुख देख लो ,मैया ने बोला हां चल मुख दिखा।
कन्हैया ने बोला मैया अगर मुझ पर विश्वास नहीं है मुझ पर भरोसा नहीं है तो मेरा मुख खोल कर देख लो। प्रभु के मुख में माटी और मैया के हाथ में साटी साटी के डर से प्रभु ने मुख खोल दिया। जैसे ही मैया ने ठाकुर जी के मुख में देखा तो संपूर्ण ब्रह्मांड दिखाई देने लगा। सात द्वीपों में जंबू द्वीप, जंबू द्वीप में भारतवर्ष, भारतवर्ष में ब्रजमंडल, ब्रजमंडल में गोकुल और गोकुल में कन्हैया को डांटते हुए मैया दिखाई दे रही है।
भगवान ने देखा मैया विस्मित हो रही है तुरंत अपनी माया को समाप्त किया , जिससे मैया सब भूल गई और कन्हैया को गोद में उठाकर के लाड ललाने लगी। इस प्रकार से भगवान ने ब्रज रज का रसास्वादन किया ब्रज रज का बड़ा महत्व है। ध्यान से सुनिएगा ब्रज का रस ब्रज की रज में है जिस ब्रज की रज को ठाकुर जी ने खाया ठाकुर जी ने ग्रहण किया , जिस ब्रज की रज में किशोरी जी ने विचरण किया , जिस ब्रज की रज में ठाकुर जी नंगे पांव चले , नंगे पांव दौड़े सोचिए वह रज कितनी महत्वपूर्ण होगी।
अच्छा ठाकुर जी ब्रज में नंगे पांव क्यों घूमते थे ? एक दिन यशोदा मैया ने ठाकुर जी से पूछ लिया क्यों कान्हा तू कुछ पहनता क्यों नहीं नंगे पांव क्यों घूमता है ? भगवान ने कहा मैया जब मेरी गैया बिना कुछ पैरों में बिना कुछ पहने विचरण करती है तो मैं तो उसका सेवक हूं मैं तो गौ पालक हूं गौ सेवक हूं मैं कैसे कुछ पहन सकता हूं। इसीलिए ब्रज रज की बड़ी महिमा है।
और हमारा यह परम सौभाग्य है कि हम जिसमें कृष्ण की कथा है उस महापुराण भागवत महापुराण को सीखने का हम प्रयास कर रहे हैं। तो यह हमारे ठाकुर जी की लीलाएं हैं जिन्हें हम आगे भी सुनते रहेंगे मैं अपने वाक्य पुष्प को ब्रज रज पर पड़ने वाले उन श्रेष्ठ वैष्णवों के चरणों में अर्पित करता हूं। बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय। भागवत महापुराण की जय। कृष्ण कन्हैया लाल की जय। शिव नमः पार्वती पते हर हर महादेव हर। जय जय श्री राधे। जय जय श्री राधे। राधे-राधे गुरु जी।
कृष्ण की बाल लीला का वर्णन bal leela krishna leela