माता सती ने ली श्री राम की परीक्षा sati ji dwara ram ki pariksha
बाबा ने कहा देवी मुनि लोग धीर योगी लोग सिद्ध लोग निरंतर निर्मल मन से जिनका ध्यान धरते हैं।
वेद भगवान जिनको नेति नेति कहते दिन रात नहीं थकते । पुराण आगम जिनकी कीर्ति का बखान करते हैं। यह वही मेरे प्रभु श्री राम है। जो सर्वव्यापक है, ब्रह्म है, माया पति है अपने भक्तों के हित के लिए मानव का शरीर धारण करके लीला कर रहे हैं ।
मां सती ने मन में यह समझ लिया है कि यह भगवान नहीं है। इसलिए अनेक प्रकार से बाबा समझा रहे हैं लेकिन समझाने का परिणाम क्या हुआ कुछ नहीं।
जब अनेक प्रकार से समझाने के बाद भी सती मैया को बात समझ में नहीं आई तो भगवान शंकर नाराज नहीं हुए मुस्कुराने लगे।
कहे मुस्कुराने लगे हो ? हम लोग तो तुरंत आग बबूला हो जाते हैं । यहां बाबा कहते हैं यदि समझाने से कोई समझ नहीं रहा है तो अपना बीपी ना बढ़ाइए ।
भगवान शिव ने कहा देवी यदि आपके मन में इतना ही संशय भ्रम है तो एक काम करिए परीक्षण कर लीजिए जाइए उनकी परीक्षा ले लीजिए।
परीक्षा लेकर के पता करिए वो कौन है? आप जब तक नहीं आएंगे मैं इसी बर्गद के वृक्ष के नीचे बैठा हूँ।
सती मैया गई भगवान शंकर सोचने लगे कि मेरे कहने के बाद भी संशय समाप्त नहीं हो रहा है। इसका अर्थ है कि अब सती का भला होने वाला नहीं है। विधाता इनके विपरीत हो गए हैं।
देखिये जीवन में जब अपने से बड़े की बात समझ में आनी बंद हो जाए तो समझिए विनाश निकट आ गया है।
सती मैया गई भगवान शंकर भजन करने लगे। सती मैया जाकर सोचने लगी क्या करूं? मैया सोची यह अपनी पत्नी सीता को ढूंढ रहे हैं यदि मैं सीता जी का चेहरा बना कर के वेष बना कर के उनके सामने जाऊ भगवान होंगे तो जान जाएंगे कि ये सीता नहीं सती है।
ये भगवान है नहीं मैं जानती हूं, जैसे मैं जाऊंगी सीते सीते कह के दौड़ के मेरे पास चले आएंगे।
मां सीता का वेश बना के सती मैया राम लक्ष्मण जी के आगे आगे चलने लगी। राम जी से पहले लक्ष्मण भैया देखे लक्ष्मण भैया देखते समझ गए कि मेरी भाभी नहीं है, नकली भाभी है । लक्ष्मण जी जानते हैं कि मेरी भाभी जीवन में कभी भैया के आगे आगे नहीं चलती है, वह मेरे भैया के पीछे पीछे चलती हैं।
ये आगे आगे चल रही हैं राम जी ने देखा सती मैया को राम जी दोनों हाथ जोड़कर बोले मैं दशरथ नंदन राम आपको प्रणाम करता हूं।
मां अकेले घूम रही हैं आप ? बाबा कहां है? वन में अकेले क्यों घूम रही हैं आप ? आपको पता नहीं कितना डेंजरस वन है ये ? सीता को मैंने अकेले छोड़ा था कोई हरण करके ले गया ।
आप भी अकेले अकेले घूम रही है।
सती मैया तो समझ गई अरे यह तो ब्रह्म है, यह तो भगवान हैं। पांव के नीचे से धरती खिसक गई हो। अपराध बोध हुआ मन में। सोचने लगी जाऊंगी तो प्रभु को क्या उत्तर दूंगी?बिना कुछ एक शब्द रघुनाथ जी से कहे सती मैया वापस लौटी और जैसे बाबा के पास गई बाबा बरगद के नीचे बैठे थे। जैसे सती मैया को देखे बाबा मुस्कुराए।
मुस्कुराकर पहले पूछे आप कुशल हैं ना? कुशलता क्यों पूछी ? चेहरा देख करके समझ गए जरूर कुछ गड़बड़ हुआ है।
बाबा पूछे सब कुशल है ना यह बताइये आपने किस विधि से परीक्षा ली? सत्य बताइएगा देवी ? सती मैया सत बताना चाहती थी परंतु आपसे निवेदन करूं जिस माया के सहारे उन्होंने सीता मैया का रूप बनाया था देखिए माया में जाना तो सरल है माया से बाहर निकलना सरल नहीं है ।
उसी माया ने सती मैया के सिर पर आसन जमा रखा था। सती मैया सोची थी सत्य सत्य सब बता दूंगी। लेकिन जैसे बाबा ने पूछा तो माया ने झूठ कहलवा दिया।
कछु ना परीक्षा लीन गोसाई
प्रभु मैंने कोई परीक्षा नहीं ली जैसे आपने ऊपर से उनको प्रणाम किया था मैं भी पास गई प्रणाम करके चली आई।
शंकर भगवान सुने तो मन में सोचने लगे इंपॉसिबल ऐसा हो नहीं सकता है। इतना समझाया समझ में बात नहीं आई और मार्ग में अपने आप समझ गई।
बाबा ने ध्यान में जाकर के देखा क्या देखा सती मैया ने सीता मैया का रूप बना लिया था और आपसे निवेदन करूं यह देख कर के बाबा को बड़ा दुख हुआ।
भगवान शंकर जानते हैं कि इस पूरे घटना क्रम में सती का अपराध नहीं है राम जी की माया ने इनसे झूठ कहवाया है। लेकिन उसके बाद भी भगवान शंकर के सामने समस्या यह है कि बाबा सोचने लगे अब जब जब सती मुझे दिखाई पड़े मुझे यही याद आएगा कि सती ने मेरी मां का रूप बनाया था ।
जिनको देखने के बाद मां याद आएगी उसके साथ गृहस्थ धर्म का निर्वाह कैसे करूंगा परिणाम बाबा ने रघुनाथ जी को मन ही मन प्रणाम किया और उसी समय मन में संकल्प किया और कहा कि जब तक सती अपने इस शरीर में है आज के बाद मेरा सती का भेंट होने वाला नहीं।
इतना कठोर संकल्प बाबा ने किया आकाशवाणी हुई आकाशवाणी ने जय जयकार किया।