ईश्वर पर विश्वास की 5 सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ Motivational story for Students in Hindi

ईश्वर पर विश्वास की 5 सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ Motivational story for Students in Hindi

ईश्वर पर विश्वास की 5 सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ Motivational story for Students in Hindi

ईश्वर पर विश्वास की 5 सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ Motivational story for Students in Hindi

  • ईश्वर में विश्वास

एक बार एक ब्राह्मण अपनी ब्राह्मणी सहित मार्ग में चला जा रहा था , कुछ दूर पर उसे चार डाकू मिले और ब्राह्मणी पर आभूषण देखकर कपट से मधुर वचन कहने लगे की। हे महाशय जी आपने कहां को प्रस्थान किया है ब्राह्मण ने अपने पहुंचने का निर्दिष्ट स्थान उनको बतला दिया। 

तब डाकू बोले कि हे महाराज जी हमको भी वही पहुंचना है जहां के लिये आपने आगमन किया है अस्तु हम और आप साथ ही साथ चलें तो बहुत अच्छा हो। 

यह सुन ब्राह्मण ने विचार किया कि इकला चलिए ना बाट अकेले रास्ते में ना चलना चाहिए यह सोचकर उनसे कहा कि चलिए हमारे लिए तो लाभ ही है क्योंकि आप इस मार्ग से पूर्ण परिचित होंगे और साथ साथ मार्ग भी अच्छी भांति तय हो जाएगा।

ऐसा कह कर ब्राह्मण ब्राह्मणी और चारों डाकू साथ हो लिए आगे एक सघन वन में जाकर डाकुओं ने मार्ग को छोड़कर एक का पगडंडी पर पदार्पण किया।

यह देख ब्राह्मण के हृदय में कुछ भय उत्पन्न हुआ और दोनों ठगों के साथ छोड़ खड़े हो गए तब चारों ठग ब्राह्मण से कहने लगे कि महाशय जी आप हमारे साथ क्यों नहीं आते हो ? यदि हम आपके साथ में दुष्कर्म करें तो हमारे और आपके बीच में रमापति राम साक्षी हैं। 

यह सुनकर ब्राह्मण को विश्वास हो गया और वह डाकुओं के साथ-साथ चल दिए अब आगे जाकर जब झाड़ियां के मध्य में प्रवेश किया तब ठगों ने ब्राह्मण के मारने को तलवार निकाली यह कौतुक को देखकर ब्राह्मण ब्राह्मणी कहने लगे हे ठगों जो तुमको लेना हो सो हमसे मांगो परंतु हमारे प्राणों को ना हरिए। 

यह सुनकर ठग बोले की हे ब्राह्मण हम बिना प्राण हरण किये किसी व्यक्ति का धन नहीं लेते यह हमारा आदि सनातन धर्म है। 

यह सुनते ही महा दीन ब्राह्मण ब्राह्मणी समेत रोने लगा और कहने लगा की हे चराचर के स्वामी भक्त वत्सल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान आप ही हमारे और इनके मध्य में साक्षी थे यदि आज आपने आकर न्याय न किया तो फिर आपको मर्यादा पुरुषोत्तम, घट घट वासी ,करुणा निधान, भुवनेश्वर, दया के समुद्र और कल्याणकारी कहना वृथा है। 

यदि आज न्याय न किया तो यह पृथ्वी रसातल को चली जाएगी इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। ब्राह्मण के इन वचनों को सुनकर विश्वास निवासी भगवान सुदर्शन चक्र धारण किये वहीं आ खड़े हुए और तुरंत ही चारों डाकुओं को मार डाला और ब्राह्मणी ब्राह्मण को दर्शन दे भगवान अंतर ध्यान हुए। 

इसलिए इस कथा से यह शिक्षा मिली कि भगवान पर विश्वास रखकर कठिन से कठिन कार्य भी सिद्ध होता है। 

इस विषय में  लिखा है-

जो जन आये हरि निकट, धरि मन में विश्वास
कोई ना खाली फिर गयौ, पूरी लियो निज आस
बिन विश्वास भगति नहीं, तेहि बिन द्रवहिं न राम
राम कृपा बिन सपनेंहु, जीव न लौह विश्राम

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  • सतोगणी गुरु की खोज

एक राजा इस चिंता में कि मैं ऐसे महात्मा को गुरु बनाऊं जो सतोगुणी हो उसने संसार में भ्रमण किया परंतु रजोगुणी और तमोगुणी के रहित उसे कोई महात्मा ना मिला।

तब वह एक दिन श्री काशी जी में गया और वहां एक महात्मा से भेंट हुई जो श्री गंगा जी में स्नान करके आ रहा था और उसके सिर पर जल का घड़ा रखा हुआ था। राजा ने महात्मा से प्रणाम कर कहा कि है तपेश्वर मैं आपसे एक प्रश्न करना चाहता हूं तो महात्मा ने प्रशन्न होकर राजा से कहा कि बच्चा पूछो?

तब राजा ने कहा कि महाराज मैं तो उस प्रश्न को भूल गया , जाने में क्या कहना चाहता था ? आपके आश्रम तक याद करके कहूंगा।

महात्मा जी खुश होकर वहां से चल दिए जब सीढियं पर चढ़ गए तब राजा बोला कि महाराज अब वह प्रश्न याद आ गया महात्मा जी ने कहा कि बच्चा पूछों फिर राजा ने कह दिया कि मैं तो महाराज फिर भूल गया। 

परंतु महात्मा जी अप्रशन्न ना हुए, राजा ने इसी प्रकार कई बार महात्मा से धोखा दिया परंतु उस सतोगुणी महात्मा के मुख पर तमोगुण नाम तक ना आया। 

फिर राजा ने महात्मा के आसन पर बैठकर कहा कि बाबा इस समय वह प्रश्न याद आ गया महात्मा जी ने फिर पहले की तरह कह दिया कि बच्चा कहो- तब राजा ने महात्मा जी से कहा कि महाराज भिष्टा क्या वस्तु होती है ?

महात्मा जी यह सुनकर बहुत हंसे और कहे कि बच्चा इस पर मक्खी बैठती है राजा ने आत्मा को पूर्ण सतोगुणी देखकर कि इतने पर भी इनके बदन पर क्रोध नहीं आया है। 

वार्तालाप किया कि मुझे अपना शिष्य बनाइये मैं अभी तक ऐसे ही गुरु की खोज में था महात्मा जी ने शिष्य बनाने से इनकार किया की शिष्य के बुरे कर्मों का फल गुरु को भोगना पड़ता है। 

दूसरे जन्म में जाकर गुरु पीपल और शिष्य चेंटा बनता है तो उसी गुरु पीपल को खाता है इस कारण से मैं किसी को शिष्य बनाना नहीं चाहता हूं। 

राजा यह वचन सुनकर चरणों पर गिर पड़ा महात्मा उसके प्रेम को देखकर बहुत प्रसन्न हुये और उसे अपना शिष्य बना लिया। 

इस कथा से यह सार निकला कि गुरु शील स्वभावी सदाचारी बनाना चाहिए क्योंकि अच्छे गुरु की संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है। 

किसी कवि ने अनुपम बात कही है- 

गुरु कीजिए जानकर पानी पीजै छानकर

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप स्वभाव , सार-सार को गहि रहे थोथा देइ उडाय

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  • सतोगुणी महात्मा

जब राजा युधिष्ठिर ने यज्ञ किया तो सब महात्मा आए परंतु एक महात्मा नहीं आया तब राजा युधिष्ठिर ने उनके पास जाकर दंडवत प्रणाम करके कहा कि हे मुनीश्वर आप मेरे साथ चलकर भवन को सुशोभित कीजिए।

महात्मा ने इनकार किया परंतु राजा के बहुत कहने सुनने पर महात्मा ने कहा कि यदि 100 यज्ञों का फल मुझे दे दो तो मैं तेरे साथ चल सकता हूं वरना नहीं।

राजा युधिष्ठिर यह ख्याल कर लौट आए कि मैं तो पहला यज्ञ आरंभ किया है , मैं सौ यज्ञों का फल कहां से दूंगा ? यही वृतांत उन्होंने आकर अपने छोटे भाइयों को सुनाया।

तब अर्जुन भीम नकुल और सहदेव बारी-बारी से उस महात्मा के पास गए परंतु महात्मा ने सबसे यही एक प्रश्न किया अंत में सब लौट आए। 

द्रोपती ने उस समय कहा कि हे प्राणनाथ यदि आप मुझे आज्ञा दें तो मैं उन महात्मा जी को ला सकती हूं युधिष्ठिर ने यह बात सुनकर आज्ञा दी और द्रोपती भी उस साधु जी के पास गई और द्रोपती से भी उसने यही प्रश्न किया। 

द्रोपती यह सुनकर बोली कि हे मुनीश्वर मैं आपको सौ क्या 101 यज्ञों का फल दूंगी तब महात्मा ने कहा अच्छा लाओ तब द्रोपती बोली कि- महात्मा जी जब कोई भी मनुष्य संत दर्शन के लिए चल देता है तो उसके एक-एक पद पर यज्ञ का फल प्राप्त होता है। मैं आपको उन यज्ञो़ का फल समर्पित करती हूं।
इस बात को सुनकर महात्मा बहुत प्रसन्न हुए और महात्मा जी द्रोपती के साथ यज्ञ को आए


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  • आजकल के श्रोता

एक ब्राह्मण के मकान पर कथा हुआ करती थी वहीं पर एक सेठ जी लाला कथा सुनने के लिए गए और कथा वाचक को नमस्कार कर के बैठ गए और सुनते ही सुनते लाला जी सो गए। 

तब लाला सेठ जी स्वप्न में क्या देखते हैं कि वह अपनी दुकान पर बैठे हुए हैं और ग्राहकों को कपड़ा दे रहे हैं अंत में सेठ जी बोले कि 4 चार ही आने गज ले लो हमको तो बेंचना ही है। 

इधर पंडित जी का जो अंगोछा था वह सेठ जी के सोते समय हाथ में आ गया था चट उसको ही उन्होंने फाड़ डाला। 

सब लोग बोले यह क्या किया लाला जी आपने ? तो वह बहुत लज्जित हुए।  अतः ऐसे सुनने से कल्याण नहीं होता की मन घर के कार्यों में लगा है और बैठे हैं कथा में , इसलिये मन लगाकर कथा सुननी चाहिए। 

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  • दुष्ट के उपाय और उपदेश से साधु भी डिग जाते हैं

एक वन में मदोत्कट नाम का सिंह रहता था उसके तीन सेवक तेंदुआ काग और सियार थे एक दिन उस वन में एक ऊंट आ निकला उसको देखकर उन तीनों सेवकों ने उसे पकड़ लिया और उसे पड़कर सिंह के पास ले गए। 

सिंह ने उसको जीवन दान दिया और उसका नाम चित्रकरन रख दिया उस दिन से ऊंट भी उनके साथ रहने लगा। 

एक बार बरसात के मौसम में लगातार तीन दिन तक पानी बरसा और उनको खाने के लिए ना मिला तब तीनों ने परस्पर सलाह की की कोई ऐसा यत्न करना चाहिए कि सिंह ऊंट को मारे और हमको खाना मिले।

उस वक्त तेंदुआ बोला कि इसको तो सिंह ने जीवन दान दे दिया है वह इसको कैसे मारेगा ? तब काग बोला की भूख सब कुछ करा लेती है समय पाकर राजा भी पाप करता है। 

जैसे भूखी नागिन अपने अंडा खाती है और यह भी कहा है कि व्यभिचारी, रोगी, असावधान, वृद्ध, अबीर, क्रोधी, लोभी, भूखा यह धर्म को जानते हैं ना मानते हैं

इस तरह से सलाह करके सिंह के पास गए और आहार न मिलने का वृतांत कहा काग बोला इस ऊंट को मार खाओ तब सिंह बोला कि मैं तो इसे जीवन दान दे दिया है फिर मैं कैसे मारूं?

तब काग ने छल कपट से यह ऊंट द्वारा कहलावा लिया कि आप मुझे मारकर अपनी छुधा शांत कीजिए क्योंकि सेवक का कर्म यही है कि-

भानु पीठ राखिष उर आगे , सेवै स्वामी सकल छल त्यागी

सिंह ने सुनकर उसको मार दिया और उसे भछण कर लिया। इससे यह सिध्द होता है कि दुष्टों के उपदेश से साधु भी डिग जाते हैं । जैसे कुटिल भौं के साथ नेत्रों को भी वक्र होना पड़ता है। 

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