हिंदी प्रेरणादायक कहानी hindi prernadayak kahani
- धैर्य यह भी मनुष्य में एक विलक्षण गुण है।
धैर्य यह भी मनुष्य में एक विलक्षण गुण है। जितने कठिन से कठिन काम है वह धैर्य से ही होते हैं। अधैर्य मनुष्य कर्तव्य को ना सोचकर अकर्तव्य कर डालता है और पीछे पछताता है।
इसलिए यह कहावत प्रसिद्ध है कि-
बिना विचारे जो करे सो पीछे पछताय।काम बिगाड़ो आपनो जग में होत हसाय।
धीरज विहीन पुरुषों का कार्य कभी सफल नहीं हो सकता है, इसलिए हर एक काम में एकाग्रता और धीरज धरना आवश्यक है। जैसे उदाहरण है कि-
किसी मनुष्य ने एक सिंह का बच्चा पाला था. उस पर वह इस तरह प्यार करता था मानो वह एक घर ही का आदमी है। धीरे-धीरे वह बच्चा पूरा सिंह हो गया। परंतु उसे यह ज्ञान नहीं था कि स्वामी वैसे ही रुधिर मांस का पिंड है जैसे कि मैं दिन प्रतिदिन प्रेम पूर्वक खाता रहता हूं।
वह शेर अपने स्वामी को देखकर आता और हाथ पांव चाटने लगता। एक समय एक कुर्सी पर उसका स्वामी बैठा किताब पढ़ रहा था और ठंडी ठंडी हवा चल रही थी।
सिंह भी उसकी बायीं ओर बैठा हुआ था। वह मनुष्य सिंह को देखकर प्रसन्न हो रहा था और विचार कर रहा था कि मेरे सामान संसार में कोई नहीं है। क्योंकि जिस सिंह के डर से दुनिया कांपती है वही सिंह आज मेरे साथ बकरी की भांति पूछ हिलाये फिरता है।
इस गर्व के करते ही नतीजा मिलता है कि सिंह उसके हाथ को चाटने लगा। मतलब यह है कि सिंह को हाथ चाटते-चाटते आधा घंटा हो गया।
जब उसकी जीव की रगड़ से हाथ में कुछ रुधिर चमचमा आया और सिंह को कुछ स्वादिष्ट मालूम पड़ा। जब स्वामी के हाथ में तकलीफ मालूम हुई तो अपना हाथ खींचा। सिंह ने तो पहले हाथ ना खींचने दिया।
परंतु जब उसने हाथ को झटका तो सिंह गरज उठा। उसका स्वामी फ़ौरन ताड गया कि सिंह की दृष्टि बदल गई है। अगर मैं हाथ को खींचता हूं तो यह मार कर ही खा जाएगा। इस कारण धीरज से काम लेना चाहिए।
यह विचार कर पुस्तक की ओर मुंह करके अपने नौकर को बुलाया और कहा कि जल्दी जाओ और बंगले में भरी हुई दुनाली बंदूक रखी है। तो उसे लाकर चुपके से सिंह के सीने और पेट में गोली मारो नहीं तो यह अभी मुझे मार डालेगा।
यह सुनकर नौकर भी थर्रा गया और वह धैर्य को धारण कर बंगले में से बंदूक ले आया और डेढ़ हाथ की दूरी से सिंह के पेट पर ऐसी गोली मारी कि वह मछली की भांति भूमि पर पड़ा ही रह गया और दूसरी गोली सीने पर ऐसी मारी की सिंह ने सांस तक भी ना ली।
नौकर ने स्वामी के प्राण बचा लिए। तब स्वामी बोला की- जान बची और लाखों पाए। अब देखिए कि यदि स्वामी पहले ही धैर्य खोकर हाथ खींचना तो सिंह एक पल में ही मारकर खा जाता।
श्रुति पुराण कवि और पंडित जनों ने भी यह उच्चारण किया है कि- पूर्व राजा तथा देश की प्रधान उन्नति का कारण धैर्य ही है। इसलिए जिस काम को आरंभ करो प्रेम पूर्वक एकाग्रता के साथ धीरज धारण करके करो तो उसमें अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी।
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- बेशकीमती राम नाम हीरा
एक महात्मा विद्या तथा राम नाम के प्रभाव से अति पूजित थे। उनको देखकर एक गवार मनुष्य ने विचार किया कि यदि मैं इस महात्मा का शिष्य हो जाऊंगा तो बिन परिश्रम के आराम प्राप्त करके गुणवान तथा यशस्वी होऊंगा।
वह महात्मा के पास गया फिर दंडवत प्रणाम करके बोला कि हे महाराज मैं आपका शिष्य होना चाहता हूं महात्मा ने बहुत इनकार किया परंतु वह मनुष्य हट पर चढ़ गया और चरणों में गिर पड़ा तो महात्मा जी ने उसको अपना शिष्य बना लिया और कहा कि मैं तुमको एक ऐसा गुरु मंत्र दूंगा कि जिसको संसार में कोई बिरला ही जानता हो
महात्मा कि इन बातों को सुनकर वह मनुष्य बहुत प्रसन्न हुआ एक दिन महात्मा जी ने उसके कान में मंत्र दिया कि-
राम राम राम राम
शिष्य इन राम नाम के मत्रों को पाकर बहुत खुश हुआ और बोला कि संत बड़े दयालू होते हैं
अब एक दिन शिष्य गंगा स्नान को गया और जब लौट आया तो बहुत से आदमी को उस मंत्र का को उच्चारण करते देखा तो उसने अपने मन में विचार किया कि महात्मा झूठा है मुझे धोखा दिया है कि इन मत्रों को कोई नहीं जानता इनको सारा संसार जानता है यह कहकर महात्मा के पास जाकर सारा वृत्तांत सुनाया तो महात्मा जी ने एक हीरा निकाल कर दिया और कहा कि इसे तुम साग वाली, पंसारी और महाजन के पास नंबर से ले जाना और कीमत की जांच कर के ले आना परंतु बेचना नहीं
शिष्य हीरा लेकर चल दिया और साग वाली को जाकर वह हीरा दिया उसने कहा कि कांच की गोली है बालकों के खेलने को अच्छी है इसलिए इसका भाव पाव सेर साग ले जा
शिष्य उसे लेकर पंसारी के पास गया तो पंसारी ने कहा कि यह बटियाओं में पड़ी रहेगी इसलिए इसका आध सेर नमक ले जा परंतु शिष्य इनकार कर दिया और फिर सुनार के पास पहुंचा तो उसने कहा कि इसके 50 रु दे सकते हैं।
फिर वह महाजन के पास गया महाजन ने 500 देने का इकरार किया परंतु उसने 500 लेने से इनकार कर दिया और हीरा को लेकर महात्मा के पास पहुंचा। महात्मा ने हंसकर कहा कि अब तुम इसे फला जौहरी के पास ले जाना शिष्य ने ऐसा ही किया तो जौहरी ने उसे 1000 देना मंजूर किया।
परंतु शिष्य फिर लौट आया तब महात्मा ने कहा कि बच्चा अपने प्रश्न का उत्तर तो समझ गए होगे शिष्य ने कहा कि नहीं समझा तो महात्मा बोले कि प्रमाण सहित उत्तर तुमको मिल गया कि मैं तुमको जो अमूल हीरा दिया था इसका परख शिवाय जौहरी के कोई नहीं जानता।
इसी प्रकार यह राम नाम हीरा अमूल्य है इसकी परख भक्त ही जानते हैं सब नहीं जानते कोई साग वाली भांति ,कोई पंसारी की भांति, कोई सुनार की तरह और कोई महाजन की तरह अलग-अलग हीरा रूपी राम नाम के महत्व को जानते हैं ।
महात्मा के इन प्रमाणिक वचनों को सुनकर शिष्य के हृदय के कपाट खुले और हाथ जोड़कर चरणों में गिर पड़ा और बोला कि सत्य है बिना गुरू जीवन में ज्ञान बैराग नहीं प्राप्त हो सकता है।