रोचक कहानी इन हिंदी- जिंदगी का शुभ कर्म rochak kahani in hindi
- कच्चे ब्रह्म ज्ञानी
किसी नगर में नाम मात्र के ब्रह्म ज्ञानी थे एक आयुर्वेदाचार्य वैद्य उस नगर में आए। जब वैद जी जिस किसी के पास जाकर अपनी आजीविका की बात करते हैं तो वे मनुष्य कहते कि ( सर्व जगत बृह्ममय ) सब पूरा जगत ब्रह्म मय है।किसी का लेना देना, औषधि रोग आदि सब कुछ ब्रह्म ही है। सभी लोग अपनी दवा करवा लेते और जब दाम देने की बारी आती तो सब कुछ ब्रह्म है ऐसी बातें करने लगते थे ।
वैद्यराज निराश हो घूमने लगे समयानुकूल उस देश का राजा रोगी हुआ और चिकित्सा भी कराई परंतु सब औषधीय ने निर्गुण रूप धारण कर लिया।
यह वैद्यराज भी राजा के पास गए। उस दयामय ईश्वर की कृपा से राजा को आराम होने लगा। तब राजा ने कहा कि वैद्यराज कोई ऐसी औषधि दो कि तत्काल गुण दिखाकर शरीर की पुष्टि करे।
तो वह वैद्यराज बोले इसके लिए एक दवा की आवश्यकता है वह आपके नगर में अधिकता से पाई जाती है।
राजा बोले वह क्या है ?
वैद्यराज ने कहा कि एक ब्रह्म ज्ञानी मंगाइए उसका तेल निकाला जाएगा। राजा बोला हमारे नगर में अनेक ब्रह्मज्ञानी हैं, नौकर को बुलाकर राजा ने उसे बाजार में भेजा वह नौकर एक दुकानदार से बोला कि तुम ब्रह्म ज्ञानी हो ? वह बोला हां ।
नौकर ने कहा तुमको राजा बुलाते हैं । दुकानदार ने कहा क्यों बुलाते हैं? नौकर ने कहा कि ब्रह्म ज्ञानी का तेल निकाला जाएगा। इस बात को सुनकर दुकानदार घबरा गया और बोला भाई मैंने तो हंसी की थी।
नौकर ने कहा तुमको राजा बुलाते हैं । दुकानदार ने कहा क्यों बुलाते हैं? नौकर ने कहा कि ब्रह्म ज्ञानी का तेल निकाला जाएगा। इस बात को सुनकर दुकानदार घबरा गया और बोला भाई मैंने तो हंसी की थी।
हम क्या हमारे कुल के भी ब्रह्मज्ञानी नहीं हैं।
फिर इस प्रकार दूसरों ने भी कहा कि हमारे बाप दादा भी ब्रह्म ज्ञानी नहीं है। अंत में मंत्री से जाकर कहा कि तुम भी ब्रह्म ज्ञानी हो इस कारण तुम्हारा ही तेल निकाला जाएगा । तब मंत्री जी बोले हम ब्रह्मज्ञानी तो नहीं वरन अन्नज्ञानी हैं।
वह नाम मात्र के ब्रह्मज्ञानी सब वचन से बिटल हो गए और वैद्यराज जी से क्षमा मांगने लगे। फिर वैद्यराज ने राजा की औषधि कर के बल बढ़ा दिया।
इस कारण इससे यह शिक्षा मिली की भक्ति को छोड़ ऐसे ब्रह्म ज्ञानी ना बनिए जिससे दोनों मार्ग जाए। ब्रह्म ज्ञान का मार्ग महा कठिन है । इसलिए ईश्वर की भक्ति करो जिससे असार संसार से पार हो जाओ।
ऐसे ब्रह्म ज्ञानी आजकल बहुत हैं तुलसीदास जी ने कहा है की- ब्रह्म ज्ञान बिन नारि नर, करहिं न दूसरि बात। कोडी लागि लो़भ बस, करहिं विप्र गुरु घात।।
किसी कुल में एक धनाड्य पुरुष रहता था। उसके तीन पुत्र थे। उन बाप बेटों की सदाचरण की प्रशंसा सब जगह फैल गई।
जब बाप का अंतिम समय आया तो उसने बिचारा की धन अधिक होने के कारण तीनों भाइयों में तकरार होगी, इसलिए जीवित ही इस धन को बराबर बराबर बांट दो।
इस तरह विचार करके वह धन तीनों में बांट दिया अंत में एक अमूल्य जवाहर बांकी रहा। तब उसके पिता ने कहा कि तुम में से जो कोई अच्छा काम करके दिखलाएगा यह जवाहर उसी को बतौर इनाम दिया जाएगा।
एक दिन बड़े बेटे के पास एक रास्तागीर विश्वास करके रकम रख गया था। उसके हृदय में लोभ की बहुत सी लहर उठी परंतु उसने जिन हाथों से उसने रकम का रख लिया था उन्हीं हाथों से उसने रास्तागीर को वापस कर दिया।
इस पर रास्तागीर ने कुछ इनाम देना चाहा परंतु उसने ना लिया और यह सारा हाल पिताजी को आकर सुनाया।
पिताजी ने कहा हे प्राण प्रिय पुत्र तुम इस एक बुराई से बच गए तो क्या किया । कोई बड़ा भी काम किया है।
एक बुराई के न करने पर तुमको इतना हर्ष शोक है- तुमको अपना उम्र पर शर्म आनी चाहिए।
इसी प्रकार एक दिन मझले बेटे ने अपने आप से आकर कहा कि मैं एक नदी की तरफ जा निकला और क्या देखता हूं कि एक नव शिशु पानी में बहा जा रहा है।
वहां पर नदी अगम थी एक किनारे पर बैठी हुई बच्चों की माता विलाप कर रही थी। इस दशा को देखकर मुझसे रहा ना गया यद्यपि यह काम खतरनाक था परंतु मैं शरीर का ध्यान न रखकर नदी में कूद पड़ा।
उस बच्चे की तो जान जा ही चुकी थी परंतु मेरी जान ईश्वर ने बचाई। अंत में बच्चे को उसकी माता से मिला दिया। बाप ने सुनकर कहा कि बेटा भले आदमियों के यही काम है।
बस तुम्हारा यही इनाम है। यदि मनुष्य पर इतना भी भलाई का काम ना हुआ तो उसका जीवन संसार में व्यर्थ है।
इसी तरह एक दिन छोटे पुत्र ने अपने बाप से कहा कि मैं एक दिन एक पहाड़ पर चला जा रहा था। रात आधी के करीब हो गई थी, मेघ घटा छाई हुई थी।
वहां हाथों हाथ कुछ दिखाई नहीं देता था और भय अत्यंत था। मेरे साथ में ना आप थे और ना मेरा कोई भाई ही था। परंतु वह एक सर्व शक्तिमान परमात्मा मेरा साथी था।
इतने ही में बिजली के प्रकाश से रास्ता में एक मनुष्य दिखाई दिया जो की खार के मुंह पर सो रहा था। मानो उसके भाग्य उसको खड़े रोते थे और उसके सर पर मौत खेल रही थी।
वह नाम मात्र के ब्रह्मज्ञानी सब वचन से बिटल हो गए और वैद्यराज जी से क्षमा मांगने लगे। फिर वैद्यराज ने राजा की औषधि कर के बल बढ़ा दिया।
इस कारण इससे यह शिक्षा मिली की भक्ति को छोड़ ऐसे ब्रह्म ज्ञानी ना बनिए जिससे दोनों मार्ग जाए। ब्रह्म ज्ञान का मार्ग महा कठिन है । इसलिए ईश्वर की भक्ति करो जिससे असार संसार से पार हो जाओ।
ऐसे ब्रह्म ज्ञानी आजकल बहुत हैं तुलसीदास जी ने कहा है की- ब्रह्म ज्ञान बिन नारि नर, करहिं न दूसरि बात। कोडी लागि लो़भ बस, करहिं विप्र गुरु घात।।
रोचक कहानी इन हिंदी- जिंदगी का शुभ कर्म rochak kahani in hindi
- जिंदगी का शुभ कर्म
किसी कुल में एक धनाड्य पुरुष रहता था। उसके तीन पुत्र थे। उन बाप बेटों की सदाचरण की प्रशंसा सब जगह फैल गई। जब बाप का अंतिम समय आया तो उसने बिचारा की धन अधिक होने के कारण तीनों भाइयों में तकरार होगी, इसलिए जीवित ही इस धन को बराबर बराबर बांट दो।
इस तरह विचार करके वह धन तीनों में बांट दिया अंत में एक अमूल्य जवाहर बांकी रहा। तब उसके पिता ने कहा कि तुम में से जो कोई अच्छा काम करके दिखलाएगा यह जवाहर उसी को बतौर इनाम दिया जाएगा।
एक दिन बड़े बेटे के पास एक रास्तागीर विश्वास करके रकम रख गया था। उसके हृदय में लोभ की बहुत सी लहर उठी परंतु उसने जिन हाथों से उसने रकम का रख लिया था उन्हीं हाथों से उसने रास्तागीर को वापस कर दिया।
इस पर रास्तागीर ने कुछ इनाम देना चाहा परंतु उसने ना लिया और यह सारा हाल पिताजी को आकर सुनाया।
पिताजी ने कहा हे प्राण प्रिय पुत्र तुम इस एक बुराई से बच गए तो क्या किया । कोई बड़ा भी काम किया है।
एक बुराई के न करने पर तुमको इतना हर्ष शोक है- तुमको अपना उम्र पर शर्म आनी चाहिए।
इसी प्रकार एक दिन मझले बेटे ने अपने आप से आकर कहा कि मैं एक नदी की तरफ जा निकला और क्या देखता हूं कि एक नव शिशु पानी में बहा जा रहा है।
वहां पर नदी अगम थी एक किनारे पर बैठी हुई बच्चों की माता विलाप कर रही थी। इस दशा को देखकर मुझसे रहा ना गया यद्यपि यह काम खतरनाक था परंतु मैं शरीर का ध्यान न रखकर नदी में कूद पड़ा।
उस बच्चे की तो जान जा ही चुकी थी परंतु मेरी जान ईश्वर ने बचाई। अंत में बच्चे को उसकी माता से मिला दिया। बाप ने सुनकर कहा कि बेटा भले आदमियों के यही काम है।
बस तुम्हारा यही इनाम है। यदि मनुष्य पर इतना भी भलाई का काम ना हुआ तो उसका जीवन संसार में व्यर्थ है।
इसी तरह एक दिन छोटे पुत्र ने अपने बाप से कहा कि मैं एक दिन एक पहाड़ पर चला जा रहा था। रात आधी के करीब हो गई थी, मेघ घटा छाई हुई थी।
वहां हाथों हाथ कुछ दिखाई नहीं देता था और भय अत्यंत था। मेरे साथ में ना आप थे और ना मेरा कोई भाई ही था। परंतु वह एक सर्व शक्तिमान परमात्मा मेरा साथी था।
इतने ही में बिजली के प्रकाश से रास्ता में एक मनुष्य दिखाई दिया जो की खार के मुंह पर सो रहा था। मानो उसके भाग्य उसको खड़े रोते थे और उसके सर पर मौत खेल रही थी।
एक ही करवट में उसका काम तमाम हो जाता।
इतने ही में फिर बिजली चमकी तो मैं उसकी शक्ल देखी तो वह मेरा खून का प्यासा दुश्मन निकला।
यदि मैं चाहता तो उसे थोड़ी ही देर में मार सकता था, परंतु मुझे ईश्वर से भय हुआ और दिल ने भी आवाज दी मरते हुए को बेरहमी से मारना यह महान अधर्म है।
तुम्हारी परीक्षा का यही समय है यदि उत्तीर्ण होना चाहो तो धर्म मार्ग ग्रहण करो। बस यह विचार करते ही मैं उसको मौत के मुंह से उठा लाया और एक चौरस जगह पर सुला दिया और मैंने अपना मुंह इस कारण ढक लिया कि यह जागने पर मुझे देखकर शर्मिंदा न हो।
बाप ने यह सुनकर उसे छाती से लगा लिया और बहुत प्रशंसा की कि बेटा तुम संसार में यशस्वी हो। यह सुन जवाहरात उसे दे दिया।
इससे यह शिक्षा मिली कि दुश्मन के साथ भी धर्म का बर्ताव करो। किसी ने क्या बढिया कहा है- जो तुम्हारे लिए कांटा बोता है तुम उसके लिए भी फूल बोओ क्योंकि तुम्हारे फूल तो फूल ही रहेंगे लेकिन उसके जो कांटे हैं वह त्रिशूल होकर के उसी का ही काम तमाम कर देंगे।
यदि मैं चाहता तो उसे थोड़ी ही देर में मार सकता था, परंतु मुझे ईश्वर से भय हुआ और दिल ने भी आवाज दी मरते हुए को बेरहमी से मारना यह महान अधर्म है।
तुम्हारी परीक्षा का यही समय है यदि उत्तीर्ण होना चाहो तो धर्म मार्ग ग्रहण करो। बस यह विचार करते ही मैं उसको मौत के मुंह से उठा लाया और एक चौरस जगह पर सुला दिया और मैंने अपना मुंह इस कारण ढक लिया कि यह जागने पर मुझे देखकर शर्मिंदा न हो।
बाप ने यह सुनकर उसे छाती से लगा लिया और बहुत प्रशंसा की कि बेटा तुम संसार में यशस्वी हो। यह सुन जवाहरात उसे दे दिया।
इससे यह शिक्षा मिली कि दुश्मन के साथ भी धर्म का बर्ताव करो। किसी ने क्या बढिया कहा है- जो तुम्हारे लिए कांटा बोता है तुम उसके लिए भी फूल बोओ क्योंकि तुम्हारे फूल तो फूल ही रहेंगे लेकिन उसके जो कांटे हैं वह त्रिशूल होकर के उसी का ही काम तमाम कर देंगे।