श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat ka swarup in hindi
आदरणीय वंदनीय पूजनीय श्री गुरुदेव जी के श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम चरण स्पर्श वंदना।
श्री गुरुदेव भगवान के वचनों तथा आज्ञा को नतमस्तक स्वीकार करते हुए शिरोधार्य कर मैं श्री गुरुदेव जी की कृपा से ही श्री मद्भागवत जी की महिमा क्या है?
इस प्रश्न का गुरुदेव भगवान की कृपा से ही उत्तर अपने भाव अनुभव के माध्यम से लेखन में वर्णित करने का प्रयास कर रही हूं। इस प्रयास का सम्पूर्ण श्रेय केवल और केवल श्री गुरुदेव भगवान को ही समर्पित है क्योंकि लेखन के प्रति भाव में चेतना जगाने वाले भी वही है, लेखन हाथ में थमा कर लिखवाने वाले भी वही है प्रश्नों के उत्तर देकर प्रत्येक परीक्षा में उर्तीण करने वाले भी वही है।
हम तो केवल निमित मात्र है जो है गुरुदेव भगवान की कृपा से है ठीक उसी प्रकार जैसे एक मिट्टी के बर्तन को कुम्हार आकार प्रदान करता है, ठीक उसी प्रकार जैसे पौधों को माली प्रतिदिन जल प्रदान कर उसे सुंदर परोपकारी वृक्ष बनाता है, इत्यादि।
जैसे श्री गुरु जी अपना ज्ञान शिष्य को प्रदान कर उसे अपने समान ही बनाने की चेष्ठा करते है श्री मद्भागवत जी की महिमा अपरम्पार है जिसका कोई पार नहीं जो सदैव अपरम्पार है रहेगी, थी और रहेगी।
जिनका शब्दों में वर्णन करना असंभव है क्योंकि संसार में ऐसी कोई कलम नहीं बनी ऐसा कोई कागज नहीं ऐसी कोई मस्तिष्क बुद्धि नहीं जिसके बल से महिमा लिखी जाए यदि तनिक मात्र भी हम में से कोई भी कुछ लिख पाए तो इसका बल भी प्रभु का गुरुदेव भगवान का ही है।
ज्ञान देने वाले हाथ कलम में थमाकर लिखवाने वाले भी वही गुरुदेव भगवान ही है इसमें हमारा कोई ज्ञान नहीं है।
इसका संपूर्ण श्रेय तो केवल गुरुदेव भगवान को ही समर्पित है।
श्री मद्भागवत जी यह स्वयं में ही महिमा से परिपूर्ण पावन भगवान का शब्दमय स्वरूप श्री विग्रह है जिनके लिए शब्द में लिखना तो मुझे ऐसे जान पड़ता है मानो पूर्ण आकाश को देखना किंतु उसकी महिमा न देख पाना, पूर्ण धरती को देखना किंतु उसे माप न पाना।पूर्ण ब्रह्मांड को देखना किंतु उसके रहस्य को ना देख पाना न जान पाना, पूर्ण संसार को देखना किंतु फिर भी उसकी परिक्रमा न कर पाना, स्वप्न देखना और उसे पूर्ण न कर पाना, जैसे समस्त पवित्र नदिया गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, गोदावरी, कृष्णा, यमुना, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कावेरी, चिनाब एवं व्यास इत्यादि इन सबका समुद्र में प्रवाहित होते हुए समाहित हो जाना।
फिर भी कही से भी इनका प्रभाव कम न होना यह निरंतर बहती ही जाती है कल्याणकारी कल्याणमय स्वरूप से जो प्रसिद्ध विख्यात है वैसे ही उससे भी अधिक बढ़कर महिमामय श्री मद्भागवत जी की ज्ञान गंगा है।
फिर भी कही से भी इनका प्रभाव कम न होना यह निरंतर बहती ही जाती है कल्याणकारी कल्याणमय स्वरूप से जो प्रसिद्ध विख्यात है वैसे ही उससे भी अधिक बढ़कर महिमामय श्री मद्भागवत जी की ज्ञान गंगा है।
जो तन, मन, जीवन को भी पावन शुद्ध पवित्र मय बनाकर तारती है, जिसमें नित्य गोता लगाकर डुबकी लगाकर भी मन तृप्त नहीं होता सदैव जो पावन गंगा श्री भागवत ज्ञान गंगा में स्नान करने को रसास्वादन प्राप्त करने को उत्सुक जिज्ञासु लालायित रहते है देवता भी जिनकी झाकी में आतुर हो भ्रमण करते है कब भागवती गंगा में स्नान का सौभाग्य प्राप्त हो कथा श्रवण करने की कृपा प्राप्त हो यह वही पावन श्री मद्भागवत महापुराण है।
सागर में से एक बूंद प्रभु हमें कृपा कर अमृत रूप में प्रदान कर रहे है कि मेरे लिए तुम एक शब्द लिखो इसका कृपा बल मैं दे रहा हूं तुम निर्भय होकर लिखो मैं स्वयं तुम्हें ज्ञान प्रेरणा आत्मबल प्रदान कर रहा हूं तुम लिखो।
जैसे स्वयं गुरुदेव भगवान कलम हाथ में देकर कह रहे यह विषय तुम्हारे लिए है इस विषय को तुम भली भांति लिखने में समझने में स्मरण शक्ति बौद्धिक विकास में पूर्णता प्रवीण कुशल प्रवक्ता बनो।
भक्ति मार्ग से जुड़ने पर हमें यदि सत्कर्म करने का विचार जाग्रत होने लगे तो यह सत्संग का ही प्रभाव होता है यह सत्संग श्री गुरुदेव भगवान जी की कृपा से सुलभ होती है।
सत्संग कथा से नकारात्मक ऊर्जा भी व्यक्ति से दूर हो जब सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित होने लगे तो यह सत्संग का ही दिव्य प्रभाव होता है।
यदि किसी व्यक्ति के दुष्ट स्वभाव में परिवर्तन हो वह उत्तम स्वभाव से युक्त होकर मन, वचन,कर्म से भी वह साधु बन जाए तो यह केवल सत्संग का ही प्रभाव होता है।
क्योंकि विवेक रूपी भाव का आना ही वह परमात्मा की अद्भुत प्रेरणा शक्ति कवच बनकर स्वयं का तथा दूसरों का उत्तम सोचने की उत्तम समझने की क्षमता भी प्रदान करती है।
बुद्धि की शुद्धि तब होती है जब परमात्मा का चिंतन विचारों के आदान प्रदान से अधिक हो जब चिंतन परमात्मा का अधिक होता है तब अंतरात्मा की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है जो बुद्धि निर्णय विचार सत्य है या असत्य सही है या गलत इसका निर्णय भली भांति लेने में सहायता प्रदान करते है किंतु अंतरात्मा की आवाज सुनना इतना सहज नहीं है।
सागर में से एक बूंद प्रभु हमें कृपा कर अमृत रूप में प्रदान कर रहे है कि मेरे लिए तुम एक शब्द लिखो इसका कृपा बल मैं दे रहा हूं तुम निर्भय होकर लिखो मैं स्वयं तुम्हें ज्ञान प्रेरणा आत्मबल प्रदान कर रहा हूं तुम लिखो।
जैसे स्वयं गुरुदेव भगवान कलम हाथ में देकर कह रहे यह विषय तुम्हारे लिए है इस विषय को तुम भली भांति लिखने में समझने में स्मरण शक्ति बौद्धिक विकास में पूर्णता प्रवीण कुशल प्रवक्ता बनो।
भक्ति मार्ग से जुड़ने पर हमें यदि सत्कर्म करने का विचार जाग्रत होने लगे तो यह सत्संग का ही प्रभाव होता है यह सत्संग श्री गुरुदेव भगवान जी की कृपा से सुलभ होती है।
सत्संग कथा से नकारात्मक ऊर्जा भी व्यक्ति से दूर हो जब सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित होने लगे तो यह सत्संग का ही दिव्य प्रभाव होता है।
यदि किसी व्यक्ति के दुष्ट स्वभाव में परिवर्तन हो वह उत्तम स्वभाव से युक्त होकर मन, वचन,कर्म से भी वह साधु बन जाए तो यह केवल सत्संग का ही प्रभाव होता है।
बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
अर्थात्: सत्संग के बिना विवेक जाग्रत नहीं होता और श्री राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता सत्संगति आनंद की जड़ है दुष्ट भी सत्संगति प्राप्त कर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर स्वर्ण बन जाता हैं।
क्योंकि विवेक रूपी भाव का आना ही वह परमात्मा की अद्भुत प्रेरणा शक्ति कवच बनकर स्वयं का तथा दूसरों का उत्तम सोचने की उत्तम समझने की क्षमता भी प्रदान करती है।
बुद्धि की शुद्धि तब होती है जब परमात्मा का चिंतन विचारों के आदान प्रदान से अधिक हो जब चिंतन परमात्मा का अधिक होता है तब अंतरात्मा की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है जो बुद्धि निर्णय विचार सत्य है या असत्य सही है या गलत इसका निर्णय भली भांति लेने में सहायता प्रदान करते है किंतु अंतरात्मा की आवाज सुनना इतना सहज नहीं है।
परमात्मा में लीन होकर ही अंतरात्मा की आवाज को जब परमात्मा की आवाज में समाहित कर देते है तब आत्मा और परमात्मा एक है यह आध्यात्मिक अनुभव ही अनेकों रहस्य को दृश्य अदृश्य दृष्टिगोचर होता है।
यह स्थिति ही समस्त बाहरी परिस्थिति से सुरक्षित रखने की शक्ति सुरक्षा कवच प्रदान करती है जो केवल भीतर में ही रमण करते है वह बाहर भ्रमण कम करते है।
जो बाहर होकर भी सदैव भीतर में निवास करता है वही परम शांति परम आनंद को वास्तविक रूप से जानता है।
यह स्थिति ही समस्त बाहरी परिस्थिति से सुरक्षित रखने की शक्ति सुरक्षा कवच प्रदान करती है जो केवल भीतर में ही रमण करते है वह बाहर भ्रमण कम करते है।
जो बाहर होकर भी सदैव भीतर में निवास करता है वही परम शांति परम आनंद को वास्तविक रूप से जानता है।