ऑनलाइन भागवत कथा सीखे Online Bhagwat Katha Sikhe
श्रीराधा कृष्णाभ्याम् नमः
निगम कल्पतरोगलितफलं शुकमुखादमृतद्रव्संयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयम मुहुरहोरसिका भुवि भावुका।।
सज्जनों! श्रीमद्भागवत महापुराण अत्यन्त ही विलक्षण ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ सारे वेद-पुराणों का सारस्वरूप फल पका हुआ, परिपूर्णतया परिपक्व है।
और जैसे लोकविदित है की शुक (तोते) के द्वारा कतरा हुआ फल अत्यन्त मीठा होता है, उसी प्रकार यह श्रीमद्भागवत महापुराण भी श्री शुकदेव जी महाराज रूपी शुक का के मुख का संयोग प्राप्त कर, अर्थात् श्री शुकदेव जी महाराज के द्वारा प्रदान किया हुआ अमृतमय ग्रन्थ है।
यह ग्रन्थ रस का आलय अर्थात रस का भवन है तो ऐसे रसालय ग्रन्थ श्रीमद्भागवत महापुराण का मुमुक्षु रसिक और भावुक गण निरन्तर पान किया करते है यह महापुराण कलियुग के मल का नाश करने वाला ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ की रचना श्री वेदव्यास जी महाराज ने की है। सज्जनों श्री वेदव्यास जी महाराज ने वेद को विभक्त कर दिया 17 पुराण लिख लिये और तो और महाभारत जैसा विशालकाय ग्रन्थ है, उसकी भी रचना कर दिये परन्तु उन्हें शान्ति प्राप्त नहीं हुई।
वह बैठकर विचार करने लगे कि उन्हें शान्ति कैसे प्राप्त हो, तब ही भगवत्प्रेरणा से भगवान् के परम भक्त श्री नारद जी वहाँ पर आये, तब श्री वेदव्यास जी महाराज ने प्रश्न किया कि मेरे चित्त की विकलता दूर कैसे हो, शान्ति कँसे प्राप्त हो?
तब भक्त शिरोमणी श्री नारद जी महाराज ने बतलाया कि- हे महामुने वेदव्यास जी आपने अब तक जितने भी वेद-पुराण आदि की रचना की है यह सब तो लौकिक कार्यों का ही सम्पादन करते है।
और लोक में कहीं शान्ति है ही नहीं तो आपको उससे शान्ति कैसे प्राप्त होगी अतः हे महर्षे! आव भगवान् तथा भगवान्के प्रिय भक्तों की कथा लिखिये, ऐसे ग्रन्थ के निर्माण से आपको अवश्यमेव शान्ति की प्राप्ति होगी।
यह महापुराण शान्ति प्रदाता है और जीव के लिए तापों का नाश करने वाला है। इस ग्रन्थ के श्रवण मात्र से अनेकों पापी, पतित मनुष्यों का उद्धार हो जाता है।
उदहरणार्थ महा कुटिल, महापापी धुन्धकारी वह भीश्रीमद्भागवत महापुराण की साप्ताहिक कथा का श्रवण कर भगवदधाम को प्राप्त हो गया ।
ज्ञान, वैराग्य सहित श्री भक्ति महारानी इस महापुराण में निवास करते हैं। जब ज्ञान और वैराग्य बूढ़े और मूर्छित अवस्था में थे और भक्ति माता उन्हें चेतन अवस्था में लाने का प्रयास कर रही थी, परन्तु वे जागृत नहीं हो पा रहे थे, उसी समय श्री नारदजी महाराज उधर से भ्रमण करते हुये आगे बढ़े, तभी भक्ति महारानी ने उन्हें रोका और उनसे प्रार्थना की कि. हे श्री नारद जी महाराज आप मेरे दोनों अचेत एवं वृद्ध पुलों को जागृत कीजिये, यह कलियुग के प्रभाव से अचेत अवस्था को प्राप्त हो गयें है।
तब श्री नारद जी महाराज ने उन्हें जगाने के अत्यन्त प्रयत्न किए किन्तु वह नहीं उठे, तब श्री नारद जी महाराज ने उन दोनों के सामने गीता-पाठ किया, वेदों की ऋच्चाऐं सुनाई, अनेकों मन्त्र सुनाये परन्तु ज्ञान और वैराग्य अपनी आँख खोलकर पुन: बन्द कर ले, तब एक आकाशवाणी हुई कि हे मुने आपके परिश्रम का निराकरण अवश्य होगा उसी उपाय को ढूंढने नारद जी महाराज अनेकों तीर्थों का भ्रमण करके बद्रीकाश्रम पहुँचें।
वहाँ उन्हें सनकादिकुमारों का दर्शन हुआ, तब नारद जी महाराज से उन्होंने पूछा कि-हे ब्रह्मन् आपका मुख कमल इतना मलीन क्यों है और आपका आगमन कहाँ से हो रहा है और आप कहाँ प्रस्थान कर रहे हैं, और आपकी निराशा का कारण क्या है?
तब नारदजी ने सारी कथा सनकादि कुमारों को सुनाई, तब सनकादिकुमारों ने कहा की हे नारद जी आप निश्चिन्त हो जाइये।
क्योंकि ज्ञान और वैराग्य को चेत कराने वाला मार्ग पहले से ही पृथ्वी पर विराजमान है, ऐसा कहकर सनकादि कुमारों ने नारद जी महाराज को श्रीमद्भागवत महापुराण का वाचन कराने बोला ।
तब हरिद्वार के आनन्दवन में श्री नारद जी महाराज ने एक मञ्च बनवाकर उसमें श्रीमद् भागवत महापुराण को विराजमान कर दिया और सनकादि कुमारों को वक्ता बनाकर श्रीमद्भागवत पुराण का वाचन करवाया।
और उसमें अत्यन्त विलक्षण आश्चर्य हुआ की ज्ञान और वैराग्य यौवन अवस्था को प्राप्त हो अपनी माता भक्ति महारानी के साथ भगवन्नाम का संकीर्तन करते हुये नृत्य कर रहे हैं उस कीर्तन में ही भगवान प्रकट हो गये और ज्ञान-भक्ति- वैराग्य को श्रीमद्भागवत महापुराण में स्थापित कर दिया।
यह श्रीमद्भावत महापुराण सर्व पाप, प्राणी के ताप - सन्ताप का नाश करने वाला है बाकि ग्रन्थ जो है वे तो पुराण हैं परन्तु श्रीमद् भागवत को महापुराण की संज्ञा दी गई हैं।
यह परमहंसों की संहिता है। भक्ति और मुक्ति की प्रदाता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के महत्व का पार पाना अत्यन्त कठिन है। यह श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान की साक्षात शब्द मयी मूर्ति है।
और यह महापुराण जीव का कल्याण करने की गर्जना करता है। जब श्री शुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित को कथा सुनाने वाले थे, तब देवता गण हाथ में अमृत का कलश लेकर शुकदेव जी महाराज के पास आये और बोले कि-हे महामुने यह अमृत आव राजा को पिला दीजिए और कथा हमें सुना दीजिए।
तब श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा कि कहाँ तो तुम्हारा यह स्वर्ग का अमृत कांच के समान और कहाँ यह श्रीमद्भागवत कथामृत ऐसा कहकर उन्होंनें देवताओं को वापस लौटा दिया।
तब देवगण ब्रह्माजी के समीप जाकर सारी बातें उन्हें बतलाए, तब ब्रह्मदेव ने कहा कि देवताओं देखते हैं सात दिन पश्चात परीक्षित की मुक्ति होती है या नहीं।
सात दिन बाद राजा परीक्षित की मुक्ति देखी तब ब्रह्मा जी और सारे देवताओं को बड़ा आश्चर्य हुआ।
ब्रह्मा ने सत्यलोक में एक तराजू बान्धा, जिसके एक पलड़े में समस्त साधनों को रखा और एक पलड़े में श्रीमद्भागवत महापुराण को रखा फिर भी श्रीमद्भागवत महापुराण वाला पलड़ा झुका ही रहा।