मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है
संसार से अधिक हमारे जीवन में महत्वपूर्ण क्या है? संसार या परमात्मा ?
परमात्मा के लिए हम क्या सोचते है? क्या करते है? इस बात पर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है, क्योंकि वो परम पिता परमात्मा ने हमें इन मायावी चक्रयू से बाहर निकालने के लिए ही तथा चौरासी के चक्कर से बचाने के लिए यह मनुष्य देह प्रदान की है कि हम जन्म मरण से मुक्त होकर केवल उस प्रभु को प्राप्त करें।
जिनके प्राप्त करने के लिए ही हमारी जन्मों जन्म की यात्रा हुई है, भगवान को प्राप्त करना दुर्लभ क्यों हो गया, क्योंकि भगवान से अधिक संसार के भोगों में अधिक रुचि महत्व दे दिया हमनें इसलिए भगवान के दर्शन नहीं हो पाए अन्यथा भगवान तो सतयुग द्वापर युग त्रेतायुग कलयुग में प्रभु के बनाए प्रत्येक युग क्षण में भगवान होते ही है।
भगवान अवतरित जन्म लेकर आए लीला की अपना उद्देश्य पूर्ण किया तत्पश्चात् अपने धाम प्रस्थान कर गए।
श्री राम जी का अयोध्या धाम आज भी है, श्री कृष्ण जी का जन्म स्थान दिव्य जाग्रत श्री धाम मथुरा वृंदावन गोकुल व्रज श्री राधा रानी का रावल गांव बरसाना सब आज भी विद्यमान है भगवान है वो चाहते तो सदैव प्रत्यक्ष उपस्थित रहते जब कि प्राकट्य स्थान वैसे का वैसा ही है।
हम सबने दर्शन किए ही है। तो फिर भगवान क्यों चले गए जैसे उनके जन्म से लेकर जब तक भगवान थे अयोध्यावासियों मथुरावासियों गोकुलवासियों ब्रजवासियों सबने भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन किए।
भगवान अवतरित जन्म लेकर आए लीला की अपना उद्देश्य पूर्ण किया तत्पश्चात् अपने धाम प्रस्थान कर गए।
श्री राम जी का अयोध्या धाम आज भी है, श्री कृष्ण जी का जन्म स्थान दिव्य जाग्रत श्री धाम मथुरा वृंदावन गोकुल व्रज श्री राधा रानी का रावल गांव बरसाना सब आज भी विद्यमान है भगवान है वो चाहते तो सदैव प्रत्यक्ष उपस्थित रहते जब कि प्राकट्य स्थान वैसे का वैसा ही है।
हम सबने दर्शन किए ही है। तो फिर भगवान क्यों चले गए जैसे उनके जन्म से लेकर जब तक भगवान थे अयोध्यावासियों मथुरावासियों गोकुलवासियों ब्रजवासियों सबने भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन किए।
भगवान उनके मध्य रहें सभी साक्षी बने वह भाग्यशाली जो उस क्षण थे तो आज भी हमें भी वो क्षण प्राप्त होना चाहिए था फिर क्यों? नहीं है भगवान क्यों?
चले गए इसलिए क्योंकि जो आया है उसका जाना निश्चित है आज नहीं तो कल उसे जाना ही होगा, भगवान श्री कृष्ण ने कहां जिसका जन्म हुआ उसका मरना निश्चित है जो आया वो जाएगा भी यहां कुछ भी स्थाई नहीं है।
यही तो भगवान का संदेश है जो हम सबके लिए है जो हुआ अच्छा हुआ जो हो रहा अच्छा हो रहा और आगे जो भी होगा अच्छा ही होगा जो आज तुम्हारा है कल किसी और का था कल परसों किसी और का हो जाएगा, तुम क्या लेकर आए जो साथ लेकर जाओगे, जो यहां से प्राप्त किया यही रह जाएगा।
साथ केवल प्रभु का भजन उत्तम कर्म ही जाएगा इसलिए इस धन को अर्जित कर परमात्मा को समर्पित कर दो वही संभालेंगे इस धन को हम तो उनकी कृपा बिना स्वयं को नहीं संभाल सकते यह सत्य है।
यही तो भगवान का संदेश है जो हम सबके लिए है जो हुआ अच्छा हुआ जो हो रहा अच्छा हो रहा और आगे जो भी होगा अच्छा ही होगा जो आज तुम्हारा है कल किसी और का था कल परसों किसी और का हो जाएगा, तुम क्या लेकर आए जो साथ लेकर जाओगे, जो यहां से प्राप्त किया यही रह जाएगा।
साथ केवल प्रभु का भजन उत्तम कर्म ही जाएगा इसलिए इस धन को अर्जित कर परमात्मा को समर्पित कर दो वही संभालेंगे इस धन को हम तो उनकी कृपा बिना स्वयं को नहीं संभाल सकते यह सत्य है।
जीवन सत्य है मृत्यु भी सत्य है।
जो सत्य है उसे स्मरण कर के जियो अमूल्य जीवन का प्रत्येक क्षण व्यर्थ न जाने पाए यही जीवन का सार है।अर्थात्: जो जन्म ले चुका है उसकी मृत्यु निश्चित हैं और जो मर चुका हैं उसका पुनर्जन्म अवंशयभावी है इसलिए तुम्हें उस अपरिहार्य बात पर शोक नहीं करना चाहिए।
क्योंकि यदि शरीर को नित्य जन्म लेने वाला और मरने वाला भी मानते हो तो भी शोक का विषय नहीं हो सकता क्योंकि जो जन्म लेता है मरना भी तय हो जाता है।
जो भय रखते है मृत्यु का उनके लिए यह संदेश है कि-
अर्थात्: जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग करके नए वस्त्र धारण करता हैं उसी प्रकार आत्मा पुराने व्यर्थ के शरीरों का त्याग करके नवीन भौतिक शरीर को धारण करता हैं।
इसलिए भय शोक से मुक्त होकर केवल उस परमात्मा का स्मरण करना चाहिए क्योंकि जब हम अपना स्वयं का संपूर्ण उत्तरदायित्व भगवान को सौप देते है स्वयं को भी तो हमें हमसे अधिक भगवान संभालता है इसमें तनिक मात्र भी संशय नहीं है।
और भगवान तो इतने कृपालु है कि जन्म से लेकर मरण तक उसका संपूर्ण भार प्रभु स्वयं संभालते है।
स्वार्थ, लोभ, सकाम भक्ति, निष्काम भक्ति, स्नेह, प्रेम, संबंध, द्वेष इत्यादि चाहे जिस भी भाव से भगवान को याद किया जाए उनका चिंतन मनन किया जाए तो भगवान उन्हें उनकी वैसी ही अभिलाषा भावना अनुसार प्राप्त हो जाते है।
चाहे किसी भी भाव से उन्हें पूजे उनका नाम स्मरण करें प्रभु सबको स्वीकार करते है जो जैसे भाव से भजे वैसे प्रभु मिलते है।भगवान की प्राप्ति तभी होगी जब भगवान से प्रेम होगा भगवान के लिए भगवान के भक्तों की तरह तड़प होगी।
भगवान को प्राप्त करना ही हमारा उद्देश्य है
क्योंकि आत्मा जन्म मरण मोह माया कर्म बंधन में इस तरह लिप्त हो गई है कि परमात्मा से ही हमारा परत्वय हो रहा है जन्मों जन्म से हम भटक ही रहे है किंतु उन परमात्मा को नहीं प्राप्त कर सके आखिर क्यों?क्योंकि परत्वय तो समस्त मायावी विकारों से होना चाहिए जो हमें नित्य प्रतिक्षण प्रभु से दूर करने में सदैव अग्रसर तत्पर रहती हैं इसलिए निष्काम भक्ति भाव से ओत प्रोत निस्वार्थ प्रेम तथा प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण हो हमें आत्मा से परमात्मा की जो दूरी है उसे समीपता में परिवर्तित करनी होगी।
आत्मा से परमात्मा का मिलन ही श्री भगवत शिव शंकर हरि राम कृष्ण भगवान का प्रत्यक्ष साक्षात् साक्षात्कार ही है भगवत प्रेम है जिसे प्राप्त करने के पश्चात् कुछ भी शेष नहीं रहता।
इसलिए प्रयत्न यही होना अति आवश्यक है कि भगवान को भगवान के प्रिय भक्तों ने जैसे प्राप्त किया वैसे ही उनके आदर्श मार्गदर्शन उपदेश अनुसार ही प्राप्त किया जाए।
उनका स्मरण किया जाए। क्योंकि भगवान श्री हरि का नाम तो हिरण्यकशिपु ने भी लिया था।
श्री कृष्ण भगवान का नाम कंश ने भी लिया था, अनेक असुर सुर मायावी राक्षसों ने भी लिया था। दुर्योधन इत्यादि ने भी लिया था।
इसी प्रकार श्री राम जी का नाम रावण ने भी लिया था, इत्यादि राक्षस ने भी लिया था, भगवान ने उन्हें उनकी भावना के अनुसार ही फल मोक्ष प्रदान किया, उन पर भी कृपा ही की है।
आत्मा से परमात्मा का मिलन ही श्री भगवत शिव शंकर हरि राम कृष्ण भगवान का प्रत्यक्ष साक्षात् साक्षात्कार ही है भगवत प्रेम है जिसे प्राप्त करने के पश्चात् कुछ भी शेष नहीं रहता।
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
अर्थात्,: प्रभु को जिसने जिस भाव से भी देखा सोचा जिसकी जैसी भी भावना रही उसने उसी के अनुसार प्रभु की छवि मन में गढ़ कर वैसे ही दर्शन प्राप्त कर लिए है।इसलिए प्रयत्न यही होना अति आवश्यक है कि भगवान को भगवान के प्रिय भक्तों ने जैसे प्राप्त किया वैसे ही उनके आदर्श मार्गदर्शन उपदेश अनुसार ही प्राप्त किया जाए।
उनका स्मरण किया जाए। क्योंकि भगवान श्री हरि का नाम तो हिरण्यकशिपु ने भी लिया था।
श्री कृष्ण भगवान का नाम कंश ने भी लिया था, अनेक असुर सुर मायावी राक्षसों ने भी लिया था। दुर्योधन इत्यादि ने भी लिया था।
इसी प्रकार श्री राम जी का नाम रावण ने भी लिया था, इत्यादि राक्षस ने भी लिया था, भगवान ने उन्हें उनकी भावना के अनुसार ही फल मोक्ष प्रदान किया, उन पर भी कृपा ही की है।
इसलिए यदि भक्ति हो तो प्रह्लाद जैसी अभिलाषा संकल्प यदि हो तो भक्त ध्रुव जैसा, भजन हो तो भक्त नरसी जी जैसा ,समर्पण प्रेम हो तो गोपियों जैसा मित्रता हो तो श्री सुदामा जैसी ,मधुरा भक्ति हो तो श्री मीराबाई के जैसी।
इसी प्रकार भगवान के चरणों की सेवा हो तो श्री केवट जैसी, भगवान का नाम सुमिरै वंदना श्रीराम भक्ति हो तो श्री विभीषण जी जैसी। भाव हो तो भीलनी तथा श्री विदुर रानी जैसे इत्यादि।
इसी प्रकार भगवान के चरणों की सेवा हो तो श्री केवट जैसी, भगवान का नाम सुमिरै वंदना श्रीराम भक्ति हो तो श्री विभीषण जी जैसी। भाव हो तो भीलनी तथा श्री विदुर रानी जैसे इत्यादि।