श्री मद्भागवत कथा की महिमा shrimad bhagwat katha ki mahima
भगवान के परम प्रिय भक्तों की भक्ति से ही यदि हमें भी भक्ति की तनिक मात्र कृपा प्राप्त हो जाए भगवान की कृपा प्राप्त हो जाए तो निश्चित ही हमारा जन्म जीवन भक्ति भी सार्थक हो जाएगी इसमें तनिक मात्र भी संशय नहीं।
क्योंकि हृदय में हो यदि प्रभु के प्रति आस्था तो बंद द्वार में भी बन जाता है रास्ता दुर्गुणों को सद्गुणों में परिवर्तन कर दे ऐसी ही भगवान की दिव्य कथा और महिमा, पापों को पुण्य में परिवर्तित कर दे ऐसी है।
भगवान की श्री मद्भागवत कथा की महिमा चित्त को निर्मल पावन कर श्री चरणों में लगा दे ऐसी है भगवान की पावन कथा की महिमा आध्यात्मिक विकास में प्रगति शिखर तक ले जाए ऐसी है भगवान की कथा की महिमा।
निर्बल के बलवान प्रभु बन जाते है ऐसी है भगवान की कथा की महिमा , दिव्य कला ज्ञान इत्यादि से जो करे नित्य श्रृंगार ऐसी है भगवान श्री हरि कृष्ण की कथा की महिमा।
भक्ति महारानी पुत्र ज्ञान वैराग्य सहित दौड़े दौड़े प्रसन्नचित्त हो आते है भक्तों के हृदय में विराजमान हो कथा में नृत्य करते है ऐसी ही भगवान की श्री मद्भागवत जी की कथा की महिमा।
श्री प्रभु की अलौकिक कृपा प्रसन्नता से श्री भागवत जी का अर्थ भक्ति, ज्ञान वैराग्य, त्याग का जब प्रवेश होता है जीवन में तो तारण निश्चित हो जाता है। अर्थात्: जीव भवसागर से तर जाता हैं।
निर्बल के बलवान प्रभु बन जाते है ऐसी है भगवान की कथा की महिमा , दिव्य कला ज्ञान इत्यादि से जो करे नित्य श्रृंगार ऐसी है भगवान श्री हरि कृष्ण की कथा की महिमा।
भक्ति महारानी पुत्र ज्ञान वैराग्य सहित दौड़े दौड़े प्रसन्नचित्त हो आते है भक्तों के हृदय में विराजमान हो कथा में नृत्य करते है ऐसी ही भगवान की श्री मद्भागवत जी की कथा की महिमा।
श्री प्रभु की अलौकिक कृपा प्रसन्नता से श्री भागवत जी का अर्थ भक्ति, ज्ञान वैराग्य, त्याग का जब प्रवेश होता है जीवन में तो तारण निश्चित हो जाता है। अर्थात्: जीव भवसागर से तर जाता हैं।
यह संसार तो दुःखालय है जो सत्य है।
उदाहरण जैसे:- आत्मदेव जी से यह शिक्षा प्राप्त होती है कि संत महात्मा ऋषि सन्यासी के वचनों को स्वीकार कर मान कर उन वचनों पर पूर्ण विश्वास कर शिरोधार्य करना ही जीवन का परम कल्याण है।जिस प्रकार आत्मदेव को समझाने के पश्चात् भी उन्होंने पुत्र प्राप्ति का हठ किया कि मुझे संतान प्राप्ति का वरदान आप दीजिए जबकि संत ने आत्मदेव जी के मस्तक की रेखा देखकर ही उन्हें कहा तुम्हारे भाग्य में संतान सुख नहीं है तुम इसके अतिरिक्त संन्यास ग्रहण करो किंतु आत्मदेव जी उनके वचनों को न मानकर अपने वचनों को मनवाने का प्रयास किया तो आत्मदेव जी ने अनदेखा किया।
तत्पश्चात् ऋषि सन्यासी तो होते ही कल्याणकारी है उन्होंने फल स्वरूप वरदान तो प्रदान किया किंतु वह फल प्राप्ति की अधिकारी उनकी पत्नी धुंधली नहीं अपितु गौ माता हुई।
जिन्हें हम माता कह कर पूजते है जो वंदनीय है जो श्री कृष्ण जी को भी अत्यधिक प्रिय है जिनकी सेवा स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गौ चारण की ग्वाल बन कर की।
जब पुत्र धुंधकारी के दुष्ट प्रवृत्ति व्यवहार आचरण से दुखी आत्मदेव जी चिंता में थे तब श्री गौकर्ण महाराज ने ही अपने पिता आत्मदेव से कहा कि पिताजी आप चिंता नहीं अपितु परमात्मा का चिंतन करिए क्योंकि परमात्मा को प्राप्त करना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। यह उपदेश हम सभी के लिए भी है।
श्री संन्यासी द्वारा फल वरदान स्वरूप गौकर्ण जी के रूप में देव स्वरूप आत्मदेव जी को पुत्र प्राप्त हुए जिन्होंने आत्मदेव जी को संन्यास मार्ग का ही अनुसरण कराया जिनके उपदेश से आत्मदेव जी ने आत्मा को देव में समाहित करके परमात्मा को प्राप्त कर लिया ऐसी है भगवान की श्री मद्भागवत कथा की महिमा।
जब आत्मदेव तथा धुंधली के पुत्र धुंधकारी अपनी दृष्ट आसुरी वृत्तियों आचरण कर्म के कारण प्रेत योनि में पीढ़ित था तो यही प्रेत योनि की पीड़ा से मुक्त करने वाली पावन श्री मद्भागवत जी की कथा ही थी जिसे भाई गोकर्ण जी के मुखारविंद से कथा श्रवण कर पतित धुंधकारी का उद्धार हुआ था।
ऐसे करोड़ो से करोड़ों जीवों का उद्धार करने वाली है श्री मद्भागवत जी कथा की महिमा
प्रकृति वृक्ष पर्वत शिखर जिनसे है संसार का कण कण जिनसे है वो सभी भगवान की कथा की महिमा का अपने अपने भावों में वर्णन करते है।
जब पुत्र धुंधकारी के दुष्ट प्रवृत्ति व्यवहार आचरण से दुखी आत्मदेव जी चिंता में थे तब श्री गौकर्ण महाराज ने ही अपने पिता आत्मदेव से कहा कि पिताजी आप चिंता नहीं अपितु परमात्मा का चिंतन करिए क्योंकि परमात्मा को प्राप्त करना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। यह उपदेश हम सभी के लिए भी है।
श्री संन्यासी द्वारा फल वरदान स्वरूप गौकर्ण जी के रूप में देव स्वरूप आत्मदेव जी को पुत्र प्राप्त हुए जिन्होंने आत्मदेव जी को संन्यास मार्ग का ही अनुसरण कराया जिनके उपदेश से आत्मदेव जी ने आत्मा को देव में समाहित करके परमात्मा को प्राप्त कर लिया ऐसी है भगवान की श्री मद्भागवत कथा की महिमा।
जब आत्मदेव तथा धुंधली के पुत्र धुंधकारी अपनी दृष्ट आसुरी वृत्तियों आचरण कर्म के कारण प्रेत योनि में पीढ़ित था तो यही प्रेत योनि की पीड़ा से मुक्त करने वाली पावन श्री मद्भागवत जी की कथा ही थी जिसे भाई गोकर्ण जी के मुखारविंद से कथा श्रवण कर पतित धुंधकारी का उद्धार हुआ था।
ऐसे करोड़ो से करोड़ों जीवों का उद्धार करने वाली है श्री मद्भागवत जी कथा की महिमा
प्रकृति वृक्ष पर्वत शिखर जिनसे है संसार का कण कण जिनसे है वो सभी भगवान की कथा की महिमा का अपने अपने भावों में वर्णन करते है।
प्रभु की कथा परोपकार सेवा का गुणगान यश गाते है प्रभु की श्रीमद्भागवत भागवत जी की महिमा सुनाते है।
श्री भागवत जी पावन कथा में अमृत रस से भी बढ़कर भगवत कृपा से ओत प्रोत रस विद्यमान है जिसका एक बार भी भगवत हृदय भाव से जिसने रस चख लिया तो वह निश्चित ही प्रभु कथा का अनुरागी रसिक बन जाता है।
और सदैव भगवान की कथा का रसास्वादन प्राप्त कर प्रभु कृपा का पात्र बन जाता है, इसमें तनिक मात्र भी संदेह नहीं है।
भगवान की दिव्य लीला कथा श्रवण कर कहीं जीव मुक्त होकर भगवान के धाम को प्रस्थान किए है।
श्री वेदव्यास जी रचित श्री मद्भागवत पुराण को जब श्री वेदव्यास जी के पुत्र श्री शुकदेव भगवान ने प्रभु की पावन कथा को परीक्षित जी को सुनाई तो पवित्र कथा श्रवण कर राजा परीक्षित जी भी मोक्ष के अधिकारी हुए।
सर्प मृत्यु के भय से मुक्त होकर परीक्षित जी भयमुक्त भी हुए। अर्थात्: श्री मद्भागवत जी की पावन कथा निर्भयता प्रदान कर निर्भय भी बनाती है इसमें तनिक मात्र भी संदेह के लिए स्थान नहीं है।
श्रीमद्भागवत जी की पावन कथा ही हमें जीवन जीने की वो दिव्य कला प्रदान करती है भारी से भारी दुख का विनाश करने में समर्थ है।
संघर्ष में संग हर्ष के साथ आनंद के साथ प्रत्येक क्षण में समान रहना सिखाती है,
दुख सुख में समान भाव से रहना सिखाती है।
चाहे योगी कोई भी हो कर्मयोगी ज्ञानयोगी भक्तियोगी तपयोगी जपयोगी कर्मयोगी संन्यासयोगी गृहस्थयोगी इत्यादि श्री मद्भागवत समस्त योगियों को श्रेष्ठ कल्याणकारी बनाती है।
भगवत मार्ग में प्रशस्त करने वाली ऐसी है श्री मद्भागवत जी की कथा की महिमा है।
श्री भागवत जी सिखाती है मांगने से अधिक देने की भावना परोपकार सेवा की भावना हृदय में सबके लिए रखना ही भगवान की प्रसन्नता का विषय है जिसे प्राप्त कर हम
संतुष्ट प्रसन्न हो जाते है यह है श्री मद्भागवत महापुराण की महिमा।
यह मनुष्य जन्म प्राप्त करना अति दुर्लभ है और उससे भी अति दुर्लभ है प्रभु में अपने चित्त को समाहित कर भगवान का भजन कीर्तन करना।
संतुष्ट प्रसन्न हो जाते है यह है श्री मद्भागवत महापुराण की महिमा।
यह मनुष्य जन्म प्राप्त करना अति दुर्लभ है और उससे भी अति दुर्लभ है प्रभु में अपने चित्त को समाहित कर भगवान का भजन कीर्तन करना।
और भगवान की कथा ही है जो मन को एकाग्र करने में भगवान के चरणों में लगाने में भजन कीर्तन नाम जप में लगाने में समर्थ है अन्यथा हमारे अनेकों प्रयास में भी वो बल नहीं जो माया के प्रभाव से हम स्वयं को बचा कर भगवान की भक्ति कर सके।
जब तक मायापति की शरण ग्रहण नहीं होती उनका बल प्राप्त नहीं होता तब तक अधम जीव माया में विचरण करता है किंतु जब भगवान की शरण ग्रहण हो जाए भगवान की कृपा बल प्राप्त हो जाए तो समस्त माया के जाल से बाहर निकल कर प्रत्येक माया के प्रभाव को निचेष्ट कर परास्त कर व्यक्ति के मन मस्तिष्क हृदय रोम रोम में केवल विचरण होती है प्रभु की भक्ति प्रभु का स्मरण भगवान का चिंतन मनन भजन कीर्तन जो उसे परमात्मा के और भी निकट ले जाता है।
दिव्य ज्ञान का प्राकट्य तो केवल प्रभु की कृपा प्रसन्नता से ही प्राप्त होता है यह है श्री मद्भागवत जी की महिमा।