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शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

गुरुदेव की महिमा gurudev ki mahima

गुरुदेव की महिमा gurudev ki mahima

गुरुदेव की महिमा gurudev ki mahima

सच्चे स्वामी सद्गुरु की पहचान

उत्तम स्वामी - सद्गुरुदेव आनंदकंद प्रभु की रीति का वर्णन लोक और वेद में इस प्रकार है कि वे अपने सेवक की विनय को सुनते ही प्रेम को पहचान लेते हैं । यह नियम है कि अमीर, गरीब, ग्रामवासी या नगरवासी, पंडित हो या मूर्ख निंदनीय या यशस्वी ऐसे ही कुकवि और सुकवि सभी नर-नारी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार अपने राजा की सराहना करते हैं । 

साधु-महात्मागण उत्तम भक्तजन एवं शील स्वभाव वाले राजागण ये सभी आनन्द कृपालु प्रभु की भक्ति, गति, उत्तम मति देखकर तथा उनके सत्संग प्रवचन सुनकर अपनी अति सुन्दर वाणी द्वारा सम्मान करेंगे और उनके गुण गायेंगे। 

भोले भण्डारी जी का तो यह प्राकृतिक ही स्वभाव है कि आनंदकंद प्रभु को सर्व शिरोमणि जानकर उनके प्रेम में प्रसन्न रहते हैं। मुझसे अधिक ऐसा कौन मंदमति होगा जो ऐसे प्रभु से प्रेम न करे। 

राम जैसे उत्तम स्वामी और मुझ जैसे कुसेवक यह मेल मिलता तो नहीं था किन्तु प्रभु ने अपनी ओर देखकर मुझ दास का पालन पोषण किया ।

मैं प्रभु का सेवक कहाता हूँ यह सभी कहते हैं किन्तु मेरे प्रभु इस उपहास को सहन करते हैं कि सीता पति राम जैसे लक्ष्मीपति विष्णु तो मेरे स्वामी और मुझ तुलसीदास जैसा सेवक। 
मुझ दुष्ट सेवक की चाहना और प्रेम मेरे कृपालु प्रभु इसी प्रकार रखते हैं जिस प्रकार राम ने पत्थरों की नाव बनाकर जल में तैराया और वानर, भालुओं को बुद्धिमान मंत्री बनाया । 

मेरे प्रभु सरल स्वभाव, सर्व शक्तिवान और सब के स्वामी हैं । वे भक्तों की बिगड़ी को सुधारकर एवं भूले भटके हुए जीवों को सदमार्ग पर लगाकर गरीबों पर दया करते हैं। अपनी करनी को समझकर मुझे अपने आप ही डर लग रहा है किन्तु मेरे दयालु प्रभु ने तो स्वपन में भी मेरे अवगुणों पर ध्यान नहीं दिया । 

आनंदकंद कृपासिंधु प्रभु तो सुनकर देखकर, अपने उत्तम चित्त में धारण कर तथा भली भाँति निरीक्षण कर मेरी भक्ति और बुद्धि की सराहना ही करते हैं। अपने अवगुण कहने से नष्ट होते हैं, हृदय पवित्र होता है और प्रभु अपने भक्त के हृदय के प्रेम को जानकर ही प्रसन्न होते हैं ।

प्रभु के हृदय में अपने भक्तों की भूल-चूक याद नहीं रहती किन्तु सैकड़ों बार उनकी, अच्छाई को, हृदय के प्रेम को याद करते हैं जिस राज्य के कारण बाली ने सुग्रीव को मारा फिर उसी राज्य के कारण सुग्रीव ने बाली को मारा और वही करनी विभिषण ने की थी, किन्तु भक्ति के कारण राम ने सपने में भी इस पर विचार नहीं किया। 

उसी विभीषण का राज्य सभा में भरत जी से मिलते समय सम्मान किया और उनके गुणों का वर्णन किया ।

इस प्रकार अपने गुण और दोषों को कहकर, सबको सिर नवाकर मैं रघुकुल स्वामी हंसवंश के सूर्य परम प्रभु के परम पवित्र गुणों का वर्णन करता हूं। जिसके सुनने से कलियुग के पाप नष्ट होते हैं । 

अव्यक्त प्रभु का व्यक्त होना

शारदा, शेष, शिव, विधाता, एवं वेद-शास्त्र- पुरान सभी जिस अनन्त विभु के गुण निरन्तर यह कहकर गान करते हैं कि उस विभु का कल्पान्त में भी अन्त नहीं होता ।

प्रभु की प्रभुता को सभी जानते हैं कि उसका नाम अकथ हैं परन्तु कहे बिना भी कोई नहीं रहा । इसका कारण वेद ने यह बताया है कि संतों ने नाम के भजनध्यान का प्रभाव बहुत प्रकार से वर्णन किया है। नाम नहीं कहा जाता, उसके गुण गाए जाते हैं । 

वह एक ही विभु नाम, रूप एवं इच्छा रहित, अजन्मा, परमधाम - सत चेतन आनन्द स्वरूप, विश्व व्यापक, विश्वरूप है । उसी विभुने देह धारण कर अनेक चरित्र किए ।

वह कृपालु विभु केवल भक्तों के हित के लिए ही अपनी शरण में आए हुए शरणागतों से प्रेम करता है । जिसकी भक्तों पर बड़ी ममता है, जो दया करके भी क्रोध नहीं करता ।

सद्गुरू देव - माता-पिता; परमेश्वर हंस आदि शक्ति भवानी के श्री चरण कमलों में प्रणाम करता हूँ जो दीनों पर दया करके नित्य प्रतिदिन दान देते रहते हैं । जो मुझ सेवक के स्वामी श्री भोलेनाथ - शिव जी मुझ तुलसीदास का बाधा रहित सब प्रकार से हित करते हैं ।

जिन्होंने कलियुग को देखकर जगत् के हित के लिए शाबर मंत्र के जाल की रचना की जिस मंत्रराज से सारा विश्व बंधा है । जिसका न अर्थ है न जाप है, जो अक्षरों में भी नहीं मिलता वह शिव जी के प्रताप से ही प्रगट होता है । 

वे उमापति महादेव मुझ पर प्रसन्न होकर इस कथा को आनन्द और मंगल की मूल बनाएंगे । हृदय में स्मरण करके उनके चरणों की कृपा का प्रसाद पाकर मैं चाव भरे चित्त से नाम के गुणों का वर्णन करता हूं ।

मेरी कविता शिव जी की कृपा से ऐसी सुशोभित होगी जैसे तारागणों के साथ पूर्ण चन्द्रमा की चांदनी रात शोभा पाती है । जो इस कथा को प्रेम सहित सावधानी के साथ समझ बूझकर कहेंगे और सुनेंगे, वे कलियुग के पापों से रहित होकर सुन्दर कल्याण के भागी बनेंगें और वे आनंदकंद सच्चिदानंद भगवान के चरणों के प्रेमी बन जाएंगे। 

जैसा भी बुद्धि का बल और विवेक होगा वैसा ही मैं आनंदकंद भगवान विष्णु की प्रेरणा से कहूँगा ।

मेरे माता-पिता भवानी शंकर स्वपन में सचमुच ही यदि प्रसन्न हैं तो जो मैं अपनी भाषा में कहता हूँ वह सब प्रभाव सत्य हो । राम चरित मानस - हृदय स्थित मानसरोवर का हंस ज्ञानियों का विज्ञान है और भक्तों के हृदय आकाश में रहने वाला विभु है। 

जो हृदयाकाश के प्रकाश में स्थित हैं और प्रगट हैं वे मुझ बालक की विनय सुनकर प्रेम सहित मुझ पर कृपा करें । 

गुरुदेव की महिमा gurudev ki mahima