F ram katha notes राम कथा लिखित - Ram Deshik Prashikshan
ram katha notes राम कथा लिखित

bhagwat katha sikhe

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  Part- 1  


श्री सद्गुरुचरण वंदना

के मनुष्य रूप में साक्षात् भगवान विष्णु जो तीनों तापों के हरण करने वाले - कृपा समुद्र हैं। ऐसे सद्गुरूदेव आनंदकंद के श्रीचरण कमलों की मैं वंदना करता हूँ जिन के वचन से महान मोह और अज्ञानांधकार का ढेर ऐसे नष्ट हो जाता है जैसे कि सूर्य के उदय होने पर रात्रि का अंधकार नष्ट हो जाता है । ।। द३ ।।

मैं वंदना करता हूँ श्रीचरण कमलों के पराग की, जो चरणामृत है और चरणरज - जो अमृत बूटी का चूर्ण है । चरणामृत के सेवन से प्रेम और नामामृत के सूंघने से उत्तम रूचि उत्पन्न होती है । 

चरणरज रूपी बूटी के सुंदर अमृतमय चूर्ण के सेवन करने से काम, क्रोध, मद, लोभ, और मोह आदि रोग जो माया के परिवार हैं वे सभी नष्ट हो जाते हैं। वह पवित्र विभूति भगवान शंकर के तन पर शोभायमान है जो मन के दोषों को दूर करके मंगल मोद और ब्रह्मानंद की दाता है। वह भक्त जनों के मन के मल को धोकर तिलक करने पर सभी गुण समूहों को वश में करती है।

श्री सद्गुरु के चरणों के नाखूनों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान हैं जिसका स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है । मोह एवं अज्ञानांधकार को नष्ट करने वाला हंस का प्रकाश हृदय में आता है। 

वह बड़ा भाग्यशाली है, उसके हृदय के नेत्र खुल जाते हैं ।  उसका अज्ञानांधकार एवं माया का मोह तथा संसार रूपी रात्रि के सभी दोष - दुःख मिट जाते हैं और नाम के गुण - मणियों की खान में प्रभु का गुप्त एवं प्रगट - विभुस्वरूप तथा प्रकाश दिखता है।

जिस प्रकार साधक और सिद्धजन आँखों में उत्तम अंजन लगाकर वन-पर्वतों में नाना भाँति के दृश्य एवं पृथ्वी के अन्दर बाहर की सब खानें देखते हैं, उसी प्रकार मैं भी श्री सद्गुरूदेव के श्री चरण कमलों की रज से अपने मन के मैल को धोकर प्रभु के निर्मल यश का वर्णन करता हूं जो हृदय स्थित ध्यान, सुमिरन, अमृतपान, एवं अनहदनाद इन चारों फलों का दाता है 1 ।। दो-४-५ ।।

आनंदकंद-सच्चिदानंद श्री सदगुरूदेव भगवान के श्रीचरण कमलों की रज - कोमल, सुन्दर और अमृतमय अंजन है जो नेत्रों के दोषों को दूर करके पवित्र करने वाली है। उस चरणरज रूपी अंजन से नेत्रों को पवित्र करके संसार के सभी दुःखों को नष्ट करने वाले नाम के गुणों का वर्णन करता हूं ।

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नाम - गुण

नाम-नामी की वंदना में स्वरूप का वर्णन

राम के गुण समूहों का वर्णन ही रामचरित मानस है । यह सभी रामायणों का सार है। यहाँ वंदना के रूप में नाम के गुणों का वर्णन है ।

अक्षरों के अर्थ समूह एवं रसों, छन्दों आदि से गाये जाने वाले संगीत को उत्पन्न करने वाली वाणी है । उस वाणी के नायक उमापति महादेव - श्री भोलेनाथ जी की मैं वंदना करता हूं। वे भवानी शंकर श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप है । 

हंस-नाम के दो अक्षरों में शिव-शक्ति अर्थात भवानी - शंकर विराजमान हैं । अतः हंस - नाम के बिना हृदय स्थित आनन्दकंद भगवान विष्णु को सिद्धजन भी नहीं देख सकते । वे दोनों अक्षर हृदय के नेत्र हैं ।

जिस हंस नाम का स्मरण करने से हाथी के बदन जैसे गणेश जी भी सिद्ध हो जाते हैं - वह मुझ पर अनुग्रह करें। जो बुद्धि को उत्पन्न करने वाला सब गुणों का घर है तथा जिस नाम का स्मरण करने से गूंगा वाचाल हो जाता है और पंगु पर्वतों पर चढ़ता है जिस हंस की कृपा से कलियुग के मल नष्ट हो जाते हैं । ।। दो६-७ ।।

मैं वन्दना करता हूँ राम के उस नाम की जो अग्नि, सूर्य और चंद्रमा के उत्पत्ति का कारण है । वह हंस नाम विधाता, विष्णु और शिव सहित प्राणों का ज्ञान है अर्थात् उस नाम के ज्ञान से ही विष्णु और शिव विधाता जाने जाते हैं वह नाम गुण नहीं किन्तु गुणों का निधान है, उपमा रहित एवं शिव जी के हृदय में निवास करने वाला हंस है। 

जिस महामंत्र को शिव जी स्वयं जपते हैं और काशी में मुक्ति के लिए उपदेश करते हैं, जिस नाम की महिमा को जानकर गणेश जी देवताओं में प्रथम पूजे गए, वह उस हंस नाम का ही प्रभाव है ।

उस आदि नाम-हंस के प्रताप को जानकर ही कवि - ज्ञानी संतजन उलटा जपकर सिद्ध हो गये । उस नाम की महिमा को सहस्रों नामों के समान शिव जी के सत्संग से जानकर पार्वती जी ने शिव जी के साथ जपा जो सब नामों का बीज मंत्र है। 

उस नामके प्रेम सहित जपने से पार्वती के हृदय का प्रेम देख शिव जी प्रसन्न हो कर जो शिव जी पार्वती के भूषण थे उन्होंने पार्वती को सब का भूषण बना दिया। नाम के प्रभाव को शिव जी भलिभाँति जानते हैं जिससे शिव जी ने विष पिया और उस विष ने अमृत का फल दिया । उस आदि नाम के सिवाय अन्य कोई नाम भी उल्टा नहीं जपा जाता ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि उत्तम सेवक रूपी धान के लिए प्रभु भक्ति वर्षा ऋतु के समान हैं। जिस प्रकार वर्षा ऋतु में श्रावण और भादों दो महीनों की जोड़ी है, उसी प्रकार भक्ति में वर्णमाला में नाम के दो अक्षरों की जोड़ी है । ।। दो ।।

ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं तथा भक्तों के हृदय के नेत्र हैं । सुमिरण करने में सुलभ और सभी को सुखदायक हैं । इस लोक में लाभदायक और परलोक का निबाह करने वाले हैं। ये दोनों अक्षर तुलसीदास को एक राम के समान दूसरा लक्ष्मण के समान प्यारे हैं। 

ये कहने, सुनने और स्मरण करने में अति सुन्दर हैं किन्तु इन अक्षरो के कहने पर प्रभु की प्रीति टूट जाती है । ये जीव को ब्रह्म से मिलाने में सहज और सहयोगी हैं । अतः नाम अकथनीय एवं जानने का विषय है ।

नर नारायण के समान सुन्दर भ्राता, जगत के पालन करने तथा भक्तजनों के रक्षक हैं। ये भक्ति रूपी स्त्री के कानों के कर्णफूल हैं, जो जगत के लिए निर्मल सूर्य और चन्द्र के समान हैं। 

ये दोनों अक्षर स्वाद में अमृत, सन्तोष में सद्गति और पृथ्वी को धारण करने में शेष तथा कच्छप के समान हैं। भक्तों के हृदय - कमल में भौरे के समान, यशोदा रूपी जीव के लिए कृष्ण-बलराम जैसे प्यारे हैं ।

संत तुलसीदास जी कहते हैं कि नाम के दो अक्षरों पर एक छत्र और दूसरा मुकटमणि विराजमान है । छोकार और मुकटमणिकार है । 'हं' शिव और 'स' - शक्ति है। शिव के ऊपर मणि है और शक्ति के ऊपर छत्र विराजमान हैं । ।। दोह ।।

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