माँ भगवती सती देवी जी sati charitra katha
विषय: "माँ भगवती सती देवी जी" PART-1
अस्मद गुरुभ्यो नमः, अस्मद परम गुरुभ्यो नमः, अस्मद सर्व गुरुभ्यो नमः, ॐ श्री शिवाय नमस्तुभ्यं,सभी भक्तों को मेरा प्रणाम, आज गुरु आज्ञा से मेरा सोभाग्य और ज्यादा जागृत हुआ है क्युकि आज का विषय माँ भगवती, माँ जगतजननी, माता "सती जी" के बारे मै लिखने को मिला है, मैं धनेय हो गया हु, मेरे रोम-रोम मै खुशी दोड उठी है क्युकी माँ भगवती के कारण ही यह जगत यह श्रृष्टि, और हम सब यहाँ विद्यमान है।
माँ भगवती का पुरा वर्णन करने मै ना तो विष्णु जी, ना ही जगत पिता ब्रह्मा जी, ना ही समस्त देवी देवता करने मै साक्षम् है, तो मैं कहा से वर्णन कर सकता हुँ, लेकिन फिर भी जो मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ अपने गुरु जी द्वारा एवम्ं प्रभु भक्ति द्वारा वो मैं लिखता हुँ, अगर मुझसे कोई भूल या गलती हो जाए तो गुरु जी क्षमा कीजियेगा।
जिस समय जगत कि श्रृष्टि से पूर्व, सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था न सूर्य, न चंद्रमा, न ही ग्रहों और नक्षत्रों का भी पता नही था, न दिन, न रात, अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, दिशा, कुछ भी नही था, उस समय सिर्फ एकमात्र सत् शेष था।
जिस समय जगत कि श्रृष्टि से पूर्व, सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था न सूर्य, न चंद्रमा, न ही ग्रहों और नक्षत्रों का भी पता नही था, न दिन, न रात, अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, दिशा, कुछ भी नही था, उस समय सिर्फ एकमात्र सत् शेष था।
जिसे योगीजन अपने हृदयाकाश के भीतर देखते है, वह सत्य, ज्ञान स्वरूप, अन्नत, परमानन्दमय, परमज्योति:स्वरूप, निर्विकार, निराकार, सर्वव्यापी, परब्रह्म 'शिव' एवम् शक्ति 'शिवा' ज्योति रूप मे विध्यमान थे।
तब उन निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से अपने लिए आकार की कल्पना करी, वह ईश्वर मूर्ति रूप ऐश्वर्य-गुणों से सम्पन्न, सर्वज्ञानमयी, शुभ स्वरूप, सबकी एकमात्र वंदनीय, सब कुछ देने वाले, भगवान सदाशिव एवम् भगवती शिवा प्रकट हुए।
तब उन निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से अपने लिए आकार की कल्पना करी, वह ईश्वर मूर्ति रूप ऐश्वर्य-गुणों से सम्पन्न, सर्वज्ञानमयी, शुभ स्वरूप, सबकी एकमात्र वंदनीय, सब कुछ देने वाले, भगवान सदाशिव एवम् भगवती शिवा प्रकट हुए।
तब उन्होंने अपने लिए एक निवास स्थान बनाया जिसे "शिव लोक" का नाम दिया गया और वहाँ दोनों प्रीया - प्रियतम, शिव एव्ं शक्ति उस मनोरम क्षेत्र में नित्य निवास करने लगे, एक समय शिवा ओर शिव के मन मे यह इक्छा हुई कि किसी दूसरे पुरुष की भी श्रृष्टि करनी चाहिए।
तब शिवजी ने अपने वाम भाग में अमृत मल दिया और वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ जिनका नाम श्री विष्णु रखा गया और माता शिवा से प्रकति उत्पन्न हुई, तब विष्णु जी ने अनेकों वर्षों की तपस्या करी।
फल-स्वरूप विष्णु जी के शरीर से जल धाराये निकली
और उससे सारा जगत जल से परिपूर्ण हो गया, तब प्रकति और पुरुष के मिलन से एक कमल पुष्प उत्पन्न हुआ, और उस कमल पुष्प पर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को रख दिया।
तब ब्रह्मा जी ने सोचा कि मै कोन हुँ और मैं यहाँ क्या कर रहा हुँ, तब उन्होंने सोचा कि इस पुष्प कि जो नाल है मैं उसी के साथ साथ चलता हु और देखता हुँ ये कहा से आ रही है, जहाँ से आ रही है शायद वहाँ जाकर ही मुझे कुछ पता लगेगा।
लेकिन काफी दिनों तक चलने के पश्चात् जब कोई-कुछ नही मिला तब सोचा कि क्यों ना मैं वहीँ पुष्प पर ही इंतेजार करू जिसने मेरी उत्पति करी है वह अवशय ही वहाँ आयेंगे, लेकिन जब वापसी मैं आने से दो गुना ज्यादा समय लगने लगा।
तब वह और परेशान हो उठे और सोचने लगे कि अब क्या होगा तभी आकाशवाणी हुई और बोली तप करो, तब ब्रह्मा जी ने 12 वर्षों तक तपस्या करी।
उसके पश्चात् विष्णु जी गए ब्रह्मा जी के पास और थोड़ी बात चीत के बाद आपस मैं बहस शुरू हों गई तभी शिवजी ने अग्नि लिंग स्वरूप के दर्शन दिये, दोनों देवता अचंभित हो गए और तब ब्रह्मा जी ने उपर कि और जा कर देखा और विष्णु जी ने नीचे कि और जा कर देखा।
लेकिन दोनों को कोई भी अंतिम छोर नहीं मिला, आपस मैं दोनों ने यह विचार किया कि यह हो ना हो ईश्वर ही है तब दोनों ने कई वर्षों तक नमष्कार् किया।
प्रभु ने दोनों से प्रसन्न हो कर दर्शन दिये
और ब्रह्मा जी को श्रृष्टि का कार्य दिया और विष्णु जी को उनकी रक्षा एवम् पालन कार्य दिया, और तुम दोनों कि सहायता के लिए मैं अपने पूर्ण रूप से रुद्र रूप मैं अवतार लूँगा और मेरा कार्य संहार करना होगा।
उसके पश्चात् तब भगवती शिवा ने उन्हें यह वरदान देते हुए कहा की तुम दोनों शिवजी से प्रकट हुए उनके ही रूप हो और कुछ समय पश्चात् आप दोनों का साथ देने के लिए मैं अपने रूप से, ब्रह्मा जी के साथ सरस्वती रूप मैं और विष्णु जी के साथ लक्ष्मी रूप मैं अवतार लुंगी और जब मेरी जरूरत रुद्र देव को पड़ेगी मैं अवतार गृहण करूँगी।
कुछ समय पश्चात्, जब ब्रह्मा जी ने कुछ प्रजा(पुत्रों) का निर्माण किया और वह प्रजा खुद से और आगे ना बड़ पाई तब उन्होंने विष्णु जी कि स्तुति करी और उनसे इसका कारण पूछा।
तब विष्णु जी ने बताया कि हमारी हर समस्या का समाधान
केवल हमारे माता-पिता (शिव एवं शिवा) ही कर सकते हैं तो आप उनसे वरदान लेने हेतु तप करो, तब ब्रह्मा जी ने शिव-शिवा जी का ध्यान करते हुए अपने मन मै अपनी इक्छा रखते हुए तप शुरू किया।
कई वर्षों कि घोर तपस्या के बाद "अर्धनारिश्वर" रूप मै भगवान शिव एवं माता शिवा ने दर्शन दिये और ब्रह्मा जी ने उनको नमष्कार करते हुए उनकी स्तुति इस प्रकार से करी।