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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

माँ भगवती सती देवी जी sati charitra katha

माँ भगवती सती देवी जी sati charitra katha

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देव। महादेव ! आपकी जय हो, ईश्वर ! महेश्वर ! आपकी जय हो, सर्वगुण श्रेष्ठ शिव आपकी जय हो, संम्पूर्ण देवताओं के स्वामी शंकर, आपकी जय हो, प्रकृतिरूपिणी कल्याणमयी उमे, आपकी जय हो, प्रकृति कि नायिके, आपकी जय हो, प्रकृति से दूर रहने वाली देवी, आपकी जय हो, प्रकृति सुन्दरी आपकी जय हो। अमोघ महामाया और सफल मनोरथ वाले देव आपकी जय हो - जय हो। 

अमोघ महालीला और कभी व्यर्थ ना जानेवाले महान बल से युक्त परमेश्वर आपकी जय हो - जय हो, संम्पूर्ण जगत‌् की माता उमे आपकी जय हो, विश्वजगन्मय आपकी जय हो, विश्वजगद्धात्रि आपकी जय हो, समस्त संसार की सखी-सहायिके आपकी जय हो। 

प्रभो आपका ऐश्वर्य तथा धाम दोनों सनातन है 

आपकी जय हो - जय हो, आपका रूप और अनुचरवर्ग भी आपकी ही भाँति सनातन है आपकी जय हो - जय हो, अपने तीन रूपों द्वारा तीनों लोकों का निर्माण, पालन और संहार करनेवाली देवी आपकी जय हो-जय हो-जय हो। 

तीनों लोकों अथवा आत्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा तीनों आत्माओं की नायिके आपकी जय हो, प्रभो जगत‌् के कारण तत्वों का प्रादुर्भाव और विस्तार आपकी कृपादृष्टि के ही अधीन है आपकी जय हो। 

देवि, आपके स्वरूप का सम्यक‌् ज्ञान देवता आदि के लिए भी असंम्भव है आपकी जय हो। आप आत्मतत्व के सूक्ष्म ज्ञान से प्रकाशित होती है आपकी जय हो, ईश्वरी आपने स्थूल आत्मशक्ति से चराचर जगत‌् को व्याप्त कर रखा है आपकी जय हो - जय हो। 

प्रभो विश्व के तत्वों का समुदाय अनेक और एकरूप में आपके ही आधार पर स्थित है आपकी जय हो, आपके श्रेष्ठ सेवकों का समूह बड़े-बड़े असुरों के मस्तक पर पाँव रखता है आपकी जय हो। शरणागतों की रक्षा करने में अतिशय समर्थ परमेश्वरी आपकी जय हो। 

संसाररूपी विषवृक्ष के उगने वाले अंकुरों का उन्मूलन करने वाली उमे आपकी जय हो, प्रादेशिक ऐश्वर्य, वीर्य और शौर्य का विस्तार करनेवाले देव, आपकी जय हो, विश्व से परे विद्यमान देव आपने अपने वैभव से दूसरों के वैभवों को तिरस्कृत कर दिया है आपकी जय हो। 

पंचविध मोक्षरूप पुरुषार्थ के प्रयोग द्वारा परमानन्दमय अमृत की प्राप्ति कराने वाले परमेश्वर आपकी जय हो। पंचविध पुरुषार्थ के विज्ञानरूप अमृत से परिपूर्ण स्तोत्रस्वरूपिणी परमेश्वरी आपकी जय हो। अत्यन्त भयानक संसाररूपी महारोग को दूर करनेवाले वेधशिरोमणि आपकी जय हो। 

अनादि कर्ममल एवं अज्ञानरूपी अंधकार राशि को दूर करनेवाली चंद्रिकारुपिणी शिवे, आपकी जय हो, त्रिपुर का विनाश करने के लिए कालाग्नि स्वरूप महादेव, आपकी जय हो। 

त्रिपुर भैरवि, आपकी जय हो। तीनों गुणों से मुक्त महेश्वर आपकी जय हो। तीनों गुणों का मर्दन करनेवाली महेश्वरि, आपकी जय हो। आदिसर्वज्ञ, आपकी जय हो। 

सबको ज्ञान देने वाली देवी

आपकी जय हो। प्रचुर दिव्य अंगों से सुशोभित देव, आपकी जय हो। मनोवांछित वस्तु देनेवाली देवी आपकी जय हो। भगवन‌्! देव! कहाँ तो आपका उत्कृष्ट धाम और कहाँ मेरी तूच्छ वाणी तथापि भक्ति भाव से प्रलाप करते हुए मुझ सेवक के अपराध को आप क्षमा कर दें ।

ब्रह्मा जी कि स्तुति से दोनों बड़े प्रसन्न हुए और बोले वर माँगो, तब ब्रह्मा जी बोले, प्रभु मैं चाहता हुँ कि प्रजा अपने आप आगे बड़े और उनमे मृत्यु का भय भी हो और प्रजा पुरुष एवं स्त्री के मिलन से बड़े तब शिवजी ने उतर दिया कि मेरे द्वारा उत्पन्न कि गई प्रजा मैं भय नहीं होगा ऐसी प्रजा तो तुम ही उत्पन्न कर सकते हो। 

ब्रह्मा जी बोले, प्रभु अब से पहले नारी जाती की शुरूवात नहीं हुई हैं और नारी जाती को बड़ाने मे, मैं सक्षम् नहीं हो पा रहा हुँ कृपया मेरी मदद कीजिये, तब उस समय अर्धनारिश्वर्रूप से माता अलग होकर आई और उन्होंने अपने दोनों भौहों के मध्ये भाग से शक्ति निकली जिसने एक नारी रूप धारण किया और उनका विवाह ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र मनु के साथ करवाया और धीरे-धीरे पूरे जगत मैं प्रजा बड़ने लगी।

कुछ समय पश्चात् एक समय नारद जी साधना मैं विलिन हो गए, जब नारद जी को तपस्या मैं निपुण् श्रद्धा से करते हुए काफी समय बीत गया तब देवताओं के राजा इंद्र को भय प्राप्त हुआ, उन्होंने सोचा कहीं नारद जी इंद्र सिंहासन प्राप्त करने हेतु तप तो नहीं कर रहे तभी राजा इंद्र ने काम देवता को बुलाया।

काम देवता शीघ्र ही वहाँ पहुँचे और इंद्र देवता को प्रणाम करते हुए ओर उन्हे परेशान देखते हुए बोले, है इंद्र देव आप इतने भयभीत और परेशान क्यों हो रहे हों, आज्ञा दीजिये मुझे क्यों याद किया, मुझे मेरा कार्य दीजिये।

तब इंद्र देवता ने उनसे कहा की हिमालय शिखर पर गंगाउद्गम (गंगोत्री) स्थान पर नारद मुनि जी साधना पर बैठे हुए है और तुम वहाँ जा कर उनकी साधना भंग करो।

काम देवता आज्ञा लेकर चले गए और उन्होंने अपनी पत्नी रति और साथी वसंत को वहाँ पर के गए, उन्होंने अपने सभी उपाए कर लिए लेकिन फिर भी कुछ भी करने मैं असमर्थ रहे क्योंकि इसमें शिवजी कि माया ही थी जिसने नारद जी की साधना को भंग नहीं होने दिया।

अब मुख् लटकाये इंद्र देवता के पास गए और अपना हाल कह सुनाया, तब इंद्र देवता बड़े घबराए और ब्रह्मा जी के पास गए और तब ब्रह्मा जी ने उन्हे शांत किया कि नारद जी के मन मैं इंद्र सिंहासन की लालसा नहीं है तुम निश्चिन्त हो जाओ।

इंद्र देवता सुख पूर्वक अपने स्थान को लोट गए। कुछ समय पश्चात जब नारद जी कि साधना पूर्ण हुई तो उनको बहुत प्रसन्नता हुई और यह गर्व भी हुआ कि उन्होंने कामदेवता पर विजय प्राप्त कर ली।

अब इस बात का प्रचार जगत में कैसे हो इस पर विचार करते हुए उन्होंने सोचा क्यों ना मैं खुद ही बताऊ, क्युकी और बाकी सबके कार्य तो मैं ही जा कर सबको बताता हुँ तो अपना खुद का यह कार्य भी मुझे ही करना चाइये।