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मंगलवार, 20 अगस्त 2024

shiv sati ka vivah शिव और सती की कथा

 shiv sati ka vivah शिव और सती की कथा

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अब समय अनुसार जब उन दोनों ने जन्म लिया और अपने वरदान के प्रभाव से वह दोनों सबसे बलवान हुए और उनमे जो बड़ा भाई था वह ज्ञान मैं भी सर्व श्रेष्ठ हुआ। 

उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके कई प्रकार के वरदान भी हासिल किये, जब वह बालक अवस्था मै ही थे तब ही उन्होंने चारों वेदों का ज्ञान, पुराणो का ज्ञान, शास्त्र ज्ञान, और अनेक प्रकार के ज्ञान प्राप्त कर लिए थे, और उन्हे यह भी पता लगा की असुर योनि मैं कई वीर हुए लेकिन देवताओं के रक्षक विष्णु जी से कोई नही जीत पाया। 

तब उन्होंने सोचा की, ना जीत पाने का कारण क्या है, तभी उन्हे एक प्रसंग याद आया कि शिवजी के वरदान के कारण ही विष्णु जी देवताओं के रक्षक है तो मैं भी शिवजी के वरदान से असुरो का रक्षक बनूँगा, शक्ति शाली तो हु ही, बस प्रम् भक्त बनना है, और उन्होंने शिव भक्ति भी प्रारंभ कर दी। 

अब एक छोटी सी बात, जब हम थोड़े ज्ञान भक्ति मैं चलते है

तो हमे थोड़ी समझ हो जाती है कि क्या पाप कर्म है और क्या पुण्य कर्म, तो सोचिये जिसे सभी वेद, सभी पुराण का ज्ञान हो गया हो वह व्यक्ति किस प्रकार कोई पाप कर्म करेगा। 

यह देख शिवजी समझ गए की इन्हे रोकने के लिए तो यहाँ कोई भी समर्थ नहीं है, तब प्रभु ने अपनी शक्ति से ही कहाँ की अब इस जगत को आपकी अवश्क़ता आ गई है तो आप भी अवतार गृहण कीजिए। 

अब अवतार लेने के लिए भी कोई कारण तो होना जरूरी है ऐसे ही प्रकट तो हो नही सकते, तो उसके लिए भी एक माया रची गई, एक समय कि बात है, ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति द्वारा एक पुत्र प्रकट किया। 

वह अति सुंदर, सबके दिल को मोह लेने वाला, तुरंत सबके दिल मैं जगह प्राप्त कर लेने वाला, सभी शुभ लक्षणों से युक्त बनाया और उनको काम देव कि पदवी भी दे दी गई साथ मैं 5 तिर भी दिये जिसकी मदद से वह किसी को भी काममोह मैं दाल सके। 

तभी उन काम देव ने अपनी शक्ति देखने के चलते वही बीच सभा मैं चला दी, और वहाँ जितने भी उपस्थित दे ब्रह्मा जी के साथ सब काम देव के बाणौ द्वारा घात हो गए, तभी वहाँ शिवजी प्रकट हुए और वहां पर आकर सारी स्थिति संभाली और साथ में ब्रह्मा जी को दांते हुए भी बोला कि यह क्या स्थिति है आपकी ब्राह्म जी, क्या श्रेष्ठ साधु कभी इस दशा में आ सकते है। 

ब्रह्मा जी को डांट फटकार वहां से चले गए, अब बीच सभा में प्रभु के द्वारा यह सब सुनकर ब्रह्मा जी को अच्छा नहीं लगा उनके मन में बदला लेने के भाव आ गया और यह सब शिव जी की माया के द्वारा ही हुआ, अब जब ब्रह्मा जी के मन में आ गया तो उन्होंने विचार किया की किस प्रकार बदला लिया जा सके। 

तब उन्होंने अपने पुत्र कामदेव को बुलाया और उनको यह कार्य दिया

कामदेव अपनी पत्नी रति और अपने साथी वसंत को लेकर शिव जी के पास गए, शिवजी तपस्या कर रहे थे कामदेव ने अपने सारे उपचार कर डालें लेकिन शिवजी के मन में स्थान न पा सके और जब थक गए, हार कर वापस गए। 

ब्रह्मा जी के पास जाकर बोले हे प्रभु मेरा अस्त्र एक स्त्री है ओर बिना स्त्री के मैं शिवाजी पर कुछ भी उपचार नहीं कर पाया और ब्रह्मा जी को प्रणाम करके वहां से चले गए और ब्रह्मा जी के मन में विचार आया की किस प्रकार शिव जी के जीवन में स्त्री आए। 

किस प्रकार शिवजी विवाह करें इस बात का विचार कर ब्रह्मा जी विष्णु जी के पास गए और उनसे इस पर बात करी, तब विष्णु जी ने उन्हें स्मरण दिलाया, की जिस प्रकार मेरे साथ श्री लक्ष्मी है और आपके साथ माता देवी सरस्वती हैं उसी प्रकार शिवजी के साथ भी जगत जगदीश्वरी माता शिवा अवतार ग्रहण करेंगी। 

शिवजी के साथ विवाह करेंगे तो इसके लिए मां जगदंबा की आराधना करनी होगी, ब्रह्मा जी विष्णुजी को प्रणाम करके अपने सत्य लोक वापस आये और आकर अपने पुत्र दक्ष को बुलाया और आदेश दिया कि तुम मां जगत जान्नी जग्दीश्वर की आराधना करो और उनसे वर मांगो कि वह अवतार ग्रहण करके शिव जी से विवाह करें। 

यह आज्ञा पाकर दक्ष बड़े प्रसन्न हुए और मां जगदंबा की आराधना करनी शुरू कर दी, कुछ वर्षों की घोर तपस्या की उपरांत जब माता प्रसन्न हुई तो राजा दक्ष को दर्शन दिये और बोला वर मांगो, राजा दक्ष ने सो वीर पुत्रों का वर माँगा और साथ ही यह वर मांगा की आप मेरी पुत्री रूप में अवतार लेकर शिव जी से विवाह करें। 

माँ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करी और एक शर्त रखी, कि जब कभी तुम्हारे मन में मेरे प्रति आधार खत्म हो जाएगा उसे दिन मैं अपना जो शरीर तुम्हारे द्वारा उत्पन्न होगा वह छोड़ दूंगी। 

तब राजा दक्ष हाथ जोड़कर माता से विनती करी

नहीं माँ ऐसा कदाचित नहीं होगा, माँ राजा दक्ष को आशीर्वाद देकर चली गई और राजा दक्ष अपने पिता ब्रह्मा जी के पास गए और बताया कि माँ भगवती ने उनकी मनोकामना पूर्ण करी है। 

अब कुछ समय पश्चात राजा दक्ष के सभी पुत्र उत्पन्न हुए और उसके बाद माता जगत जान्नि ने अवतार ग्रहण किया और जिस समय माता शिशु रूप में थी उस समय राजा दक्ष और उनकी पत्नी को अपना स्वरूप दिखाकर यह बताया की जो तुमने वर मांगा था वह आज पूरा हुआ मैंने तुम्हारी पुत्री रूप में अवतार ग्रहण किया है। 

राजा दक्ष और उनकी पत्नी बड़ी प्रसंन हुए, बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया, माँ भगवती का नामकरण में माता का नाम देवी सती रखा गया। 

अब जब धीरे धीरे माता बड़ी हुई तब दक्ष के मन में चिंता हुई की किस प्रकार शिवजी के साथ उनका विवाह होगा, तभी वहाँ नारद जी पहुंचे और उन्होंने माता सती को शिव जी को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने का उपदेश दिया और माता ने शीघ्र अपने माता के पिता से आज्ञा माँगी और तपस्या के लिए चली गई। 

माता की कठिन तपस्या और नंदा व्रत के प्रभाव से शिवजी प्रसन्न हुए और दर्शन दिये और पूछा वर मांगो, माता सती लज्जा के कारण कुछ ना बोल पाई, तब शिवजी ने खुद ही बोला कि तुम मेरी पत्नी हो जाओ। 

तो माता सती ने कहा कि आप वैवाहिक कार्य द्वारा मेरे पिता से मुझे ग्रहण कीजिए, शिवजी ने तथास्तु कहा और कुछ समय वहाँ व्यतीत करने के बाद शिवजी अपने घर कैलास पर्वत गए और माता सती अपने राजमहल में आ गई। 

राजा दक्ष को बड़ी प्रसन्नता हुई, उन्होंने बहुत सारे दान दिए और उत्सव रचाया, इसके बाद, सोचने लगे की शिवजी आए भी और चले भी गए लेकिन विवाह कैसे होगा, विवाह का कार्य आगे कैसे बढ़ेगा। 

इधर जब शिवजी कैलास पहुँच गए तब उन्होंने ब्रह्मा जी को बुलाया और कहा की देवी सती के नन्दा व्रत के प्रभाव से मैंने उन्हें वरदान दिया है कि वह मेरी पत्नी रूप में मुझे विवाह करें, तो अब बाकी के विवाह के कार्य आगे आप ही संभालो और दक्ष के पास जाकर, विवाह कार्य पूरा करो, यह बात सुनकर ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए अपने पुत्र दक्ष के यहाँ गए।

अपने पुत्र दक्ष के पास जाकर माता सती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहा, राजा दक्ष भी बड़े प्रसन्न हुए क्योंकि वह यह सोच रहे थे की किस प्रकार मेरी पुत्री का विवाह शिवजी से होगा, राजा दक्ष आनंदित हो उठे और बोले ऐसा ही होगा दक्ष ऐसे संतुष्ट हुए मानो अमृत पीकर अदा गए हो। 

ब्रह्मा जी वापस कैलास को गए और जो कुछ दक्ष ने कहा था वह बताया कि, दक्ष ने कहा है कि मैं अपनी पुत्री भगवान शिव के ही हाथ में दूंगा क्योंकि उन्ही के लिए माँ भगवती ने अवतार लिया है और मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी पुत्री का विवाह भगवान शिव से ही हो। 

वे भगवान शंकर शुभ लगन और शुभ मुहूर्त में यहाँ पधारे

तभी भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से कहा कि तुम अपने सभी पुत्रों को बुलाओ और शिव जी ने विष्णु जी को बुलाया, विष्णु जी माता लक्ष्मी सहित तुरंत वहां पहुंचे और शिव जी अपनी बारात को सुसज्जित करके दक्ष के यहाँ पहुँचे। 

राजा दक्ष ने भगवान शिव और समस्त देवताओं को उत्तम आसान दिया और ब्रह्मा जी से हाथ जोड़कर निवेदन किया, पिताजी आप ही वैवाहिक कार्य कीजिए। 

ब्रह्मा जी द्वारा विवाह संपन्न हुआ, महान उत्सव मनाया गया शिवजी माता सती और सभी देवता कैलास तक शिवजी के साथ वापसी गए और कैलास पहुंचकर शिवजी ने सबको विदा किया।

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