पूजन सम्बन्धित आवश्यक जानकारी puja ki jankari hindi me
पत्र पुष्प तथा फल अधोमुख न चढ़ावे किन्तु विल्व पत्र अधोमुख ही चढ़ावें ।
कमल पांच रात्रि तक, विल्व पत्र दश रात्रि तक, तथा ११ रात्रि तक तुलसी पर्युषित नहीं होती । - स्मृत्यन्तर ।
शिवजी को विल्वपत्र, विष्णु को तुलसी, गणेश को दूर्वा, दुर्गा को अनेक प्रकार के पुष्प, सूर्य को लाल करवीर पुष्प अतिप्रिय हैं । - स्मृत्यन्तर ।
पुष्प न मिलने पर पत्र ही निवेदित किया जा सकता है। पत्राभाव में तृण या छाल चढ़ा सकते हैं वह भी न हो तो भक्ति से मानसिक पूजन करें। - भविष्यपुराण
कृमि कीट से छिद्र किये हुए, सड़े हुये, वासी, स्वयं गिरे हुये तथा जिनमें मलादि विकार लगा हो अर्थात् बहुत गंदा हो उन्हें देवताओं में नहीं चढ़ावे। - भविष्यपुराण
अधोवस्त्र में रखे हुए तथा जल से धुले हुए फूल देवता नहीं ग्रहण करते । भविष्यपुराण
अङ्गुष्ठ के अग्रभाग से देव मूर्ति को नहीं रगड़ना चाहिए, कुशा के अग्रभाग से देवताओं में जल न छिड़के, वह वज्रपात के समान होता है । - वार्तिक
जमीन में गिरे हुए तथा सूखे हुये फूलों से, पंखुड़ी पृथक् किये हुए फूलों से तथा पुष्पकली से देवपूजा नहीं करनी चाहिए । - हारीत
बिना टूटे चावल ही अक्षत कहे जाते हैं अत: साबुत चावलों को शुद्ध जल से तीन बार धोकर ही देव पूजन में प्रयोग करना चाहिए ।
एक बार चढ़े हुए फूल, बेलपत्र या तुलसीदल को दोबारा नहीं चढ़ाना चाहिए।
उग्र गन्ध वाले दूषित गन्धवाले तथा निर्गन्ध पुष्पों से पूजा न करें।- वार्तिक
वस्त्र में लाए हुए, हाथ में लाए हुए, स्वयं गिरे हुए तथा एरण्ड पत्र में लाये हुए फूलों से पूजा न करें। - - हारीत
अक्षत से विष्णु (शालग्राम) की, तुलसी से गणेश की, दूर्वा से दुर्गा की, उन्मत्त (धतूरा) से सूर्य की पूजा न करें अर्थात्, इन्हें न चढ़ावें । भट्टि ज्ञानमाला
मदार का फूल तथा धतूरा विष्णु को सदा वर्जित है। कीड़े से युक्त फल भी देवों को नहीं चढ़ाना चाहिए। - • ज्ञानमाला
गणेश को लड्डू प्रिय हैं। गणेशो लड्डुकप्रियः।
हरित या श्वेत दूर्वा पांच या पत्र से युक्त २१ संख्या में गणेश को चढ़ावें।
तुलसी के अतिरिक्त सभी पुष्प पत्र गणेश को चढ़ते हैं।
शिवपूजा में जो पत्र-पुष्प विहित हैं सभी गौरी जी को प्रिय हैं।
अपामार्ग (चिचिड़ी) गौरी जी को विशेष प्रिय है।
जितने भी लाल पुष्प हैं वे भगवती को अभीष्ट हैं। सुगंधित सभी श्वेत पुष्प भी भगवती को प्रिय हैं।
आक (मदार ) का निषेध भी मिलता है, देवीनामर्कमन्दारौ वर्जयेत्। किन्तु दुर्गा में चढ़ाया जा सकता है।
शमी, अशोक, कर्णिकार ( कनियार या अमलतास) गूमा, दोपहरिया, अगस्त्य, मदन, सिन्दुवार शल्लकी, माधवी आदि लताएं कुश की मंजरियां विल्वपत्र, केवड़ा, कदम्ब, भटकटैया, कमल इत्यादि फूल भगवती को प्रिय हैं।
ताम्रपात्र में रखा हुआ चन्दन, चर्मपात्र में तीर्थजल या गंगा जल अपवित्र हो जाता है।
दीपक को दीपक से नहीं जलाना चाहिए, ऐसा करने से दरिद्रता आती है।
एक हाथ से प्रणाम तथा प्रदक्षिणा न करें।
दूसरी की धारण की हुयी अंगूठी मंगल कार्य में न धारण करें।
पूजन में स्त्री को दाहिने, किन्तु अभिषेक, विप्रपादप्रक्षालन, सिन्दूरदान तथा शय्या में बाएं बैठाने का विधान है।
स्त्रियों के बाएं हाथ में रक्षा बाँधने की परम्परा है, जबकि रक्षा दाहिने हांथ में बांधना चाहिए।
नित्य होम तथा विवाहादि संस्कार में पूर्णाहुति नहीं करना चाहिए।
शनि, भौम, बुध तथा रविवार को लक्ष्मी पूजन आरम्भ न करें।
पौष शुक्ल दशमी, चैत्र शुक्ल पंचमी, श्रावण पूर्णिमा को लक्ष्मी के अनुष्ठान से अभीष्ट की सिद्धि होती है।
दुर्गा होम, ग्रह शान्ति होम, सत्यनारायण व्रत कथा होम, नित्य नैमित्तिक होम तथा विवाहादि संस्कारों में किए जाने वाले हवन कर्म में अग्निवास का विचार नहीं किया जाता।
ब्रह्ममुहूर्त, प्रदोषकाल, प्रदोष पर्व, सोमवार, श्रावणमास, आर्द्रा नक्षत्र, द्वादशी तिथि एवं अन्य शिवजी के विशेष पर्वों में रुद्राभिषेक रुद्रयज्ञारम्भ, महामृत्युञ्जय मंत्रारम्भ के लिए, शिववास का विचार नहीं करना चाहिए। - पर्वदर्शन
किसी भी देवता की आराधना के लिए उनके दिन, तिथि, नक्षत्र काल, पर्व में पृथक् से मुहूर्त्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।- वत्स संहिता
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